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पपुराणे
पुष्पिताग्रावृत्तम् इति वनगहनान्यपि प्रयाताः सुकृतसुसंस्कृतचेतसो मनुष्याः। अतिपरमगुणानुपाश्रयन्ते रविरुचयः सहसा पदार्थलामान् ॥१०३॥
इत्यार्षे रविषेणाचार्यप्रोक्त पद्मपुराणे-पद्मायने वनमालाभिधानं नाम षटत्रिंशत्तम पर्व ॥३६॥
लगे ॥१०२।। गौतम स्वामी कहते हैं कि जिनके चित्त पुण्यसे सुसंस्कृत हैं तथा जो सूर्यके समान दीप्तिके धारक हैं ऐसे मनुष्य सघन वनोंमें पहुंचकर भी सहसा उत्कृष्ट गुणोंसे युक्त पदार्थोंको प्राप्त कर लेते हैं ।।१०३।।
इस प्रकार आर्ष नामसे प्रसिद्ध, रविषेणाचार्य कथित पचरितमें वनमालाका
वर्णन करनेवाला छत्तीसवाँ पर्व समाप्त हुआ ॥३६॥
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