________________
२००
पद्मपुराण
ज्ञानत्रितयसंपन्नौ महाव्रतपरिग्रहौ । परेण तपसा युक्तौ दुस्पृहामुतमानसौ ॥ १४ ॥ सोपवासिनी वीरौ गुण्यौ शुभसमोहितौ । यच्छन्तौ नयनानन्द बुधचन्द्रमसाविव ॥१५॥ मुनी सुगुप्ताख्यावायान्तौ संमुखं भुवः । यथोक्ताचारसंपन्नौ सहसा सीतयेक्षितौ ॥१६॥ ततः प्रमदसंमारविकसन्नेव शोभया । दयिताय तया ख्यातमिति रोमांचिताङ्गया ||१७|| पश्य पश्य नरश्रेष्ठ ! तपसा कृशविग्रहम् । दैगम्बरं परिश्रान्तं मदन्तयुगलं शुभम् ॥ १८ ॥
तत् क्वतप्रिये साध्वि पण्डिते चारुदर्शने । निर्ग्रन्थयुगलं दृष्टं भवस्या गुणमण्डने ॥ १९॥ यन्निरीक्ष्य वरारोहे सुचिरं पापमर्जितम् । क्षणात् प्रणाशमायाति जनानां भक्तचेतसाम् ॥२०॥ इत्युक्ते रघुचन्द्रेण सीतोवाच ससम्भ्रमा । इमाविमाविति प्रीत्या स तदाभूत् समाकुलः ॥२१॥ ततो युगमितक्षोणीदेशविन्यस्तलोचनौ । मुनी प्रशान्तगमनौ सुसमाहितविग्रहौ ||२२|| अभ्युत्थानाभियानाभिस्तुष्टः प्रणमनादिभिः । दम्पतीभ्यां कृतावेतौ पुण्यनिर्झरपर्वतौ ॥ २३ ॥ शुच्यङ्गया च वैदेह्या महाश्रद्धापरोतया । परिविष्टं तयोः "श्राद्धं रमणेन समेतया ||२४|| गवामरण्यजातानां महिषीणां च चारुणा । हैबङ्गवीन मिश्रेण पयसा तत्समुद्भवैः ॥२५॥ खर्जूरैरिङ्गुदैराम्रैर्नालिकेरै रसान्वितैः । बदराम्लातकाद्यैश्च वैदेह्या सुप्रसाधितैः ॥२६॥ आहार्यैर्विविधैः 'शास्त्रदृष्टिशुद्धिसमन्वितैः । पारणां चक्रतुर्गृद्धासंबन्धोज्झितचेतसौ ॥२७॥
नाम दो मुनि देखे । वे मुनि आकाशांगण में विहार कर रहे थे, कान्तिके समूहसे उनके शरीर व्याप्त थे, वे बहुत ही सुन्दर थे, मति श्रुत-अवधि इन तीन ज्ञानोंसे सहित थे, महाव्रतोंके धारक थे, परम तपसे युक्त थे, खोटी इच्छाओंसे उनके म रहित थे, उन्होंने एक मासका उपवास किया था, वे धीर-वीर थे, गुणोंसे सहित थे, शुभ चेष्टाके धारक थे, बुध और चन्द्रमाके समान नेत्रोंको आनन्द प्रदान करते थे और यथोक्त आचारसे सहित थे ||१३ - १६ ॥ तदनन्तर हर्षंके भारसे जिसके नेत्रोंकी शोभा विकसित हो रही थी तथा जिसके शरीर में रोमांच उठ रहे थे ऐसी सीताने रामसे कहा कि हे नरश्रेष्ठ ! देखो देखो, तपसे जिनका शरीर कृश हो रहा है तथा जो अतिशय थके हुए मालूम होते हैं, ऐसे दिगम्बर मुनियोंका यह युगल देखो। ।१७-१८ || रामने सम्भ्रममें पड़कर कहा कि हे प्रिये ! हे साध्वि ! हे पण्डिते ! हे सुन्दरदर्शने ! हे गुणमण्डने ! तुमने निग्रन्थ मुनियोंका युगल कहाँ देखा ? कहाँ देखा ? ॥ १९ ॥ | वह युगल कि जिसके देखनेसे हे सुन्दरि ! भक्त मनुष्यों का चिरसंचित पाप क्षण भरमें नष्ट हो जाता है ||२०|| रामके इस प्रकार कहनेपर सीताने सम्भ्रम पूर्वक कहा कि 'ये हैं, ये हैं' । उरा समय राम कुछ आकुलताको प्राप्त हुए ||२१||
तदनन्तर युग प्रमाण पृथिवीमें जिनकी दृष्टि पड़ रही थी, जिनका गमन अत्यन्त शान्तिपूर्ण था और जिनके शरीर प्रमादसे रहित थे, ऐसे दो मुनियोंको देखकर दम्पती अर्थात् राम और सीताने उठकर खड़े होना, सम्मुख जाना, स्तुति करना, और नमस्कार करना आदि क्रियाओंसे उन दोनों मुनियोंको पुण्यरूपी निर्झर के झरानेके लिए पर्वतके समान किया था ||२२-२३|| जिसका शरोर पवित्र था, तथा जो अतिशय श्रद्धासे युक्त थी ऐसी सीताने पति के साथ मिलकर दोनों मुनियों के लिए भोजन परोसा आहार प्रदान किया ||२४|| वह आहार वनमें उत्पन्न हुई गायों और भैंसोंके ताजे और मनोहर घी, दूध तथा उनसे निर्मित अन्य मावा आदि पदार्थों से बना था ॥२५॥ खजूर, इंगुद, आम, नारियल, रसदार वेर तथा भिलामा आदि फलोंसे निर्मित था ॥ २६ ॥ इस प्रकार शास्त्रोक्त शुद्धिसे सहित नाना प्रकार के खाद्य पदार्थोंसे उन मुनियोंने पारणा की । उन
१. नन्दो म. । २. भुवा म., ख. । ३ विकशन्नेव म । ४. यानाभिस्तुष्टः प्रणयनादिभिः म, यानाभितुष्टि प्रणयनादिभिः ब. । ५. भोजनं । ६. दृष्टिताडिताः म. ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org