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पद्मपुराणे
तत्र भद्रासने रम्ये स्थितः काकुत्स्थनन्दनः । केयूरभूषितभुजो ज्वलल्लक्ष्म्या समन्ततः ॥७१॥ 'स्वच्छनीलाम्बरधरश्चूडामणिरिवोज्ज्वलः । रराज वरहारेण सोडुचन्द्र इवोद्गतः ॥७२॥ दिव्य पीताम्बरधरो हारकेयूरकुण्डली । सुमिश्रातनयो रेजे सतडिज्जलदो यथा ॥ ७३ ॥ वानराभोगमुकुटः सुरवारणविक्रमः । अभात्सुग्रीवराजोऽपि लोकपाल इवोर्जितः ॥७४॥ विराधितः कुमारोऽपि सौमित्रेः पृष्ठतः स्थितः । अलक्ष्यत नृसिंहस्य चक्ररत्नमिवौजसा ॥७५॥ हनुमानप्यलं रेजे पद्मनामस्य धीमतः । समीपे पूर्णचन्द्रस्य स्फोतो बुध इवोदितः ||७६ || 'सुगन्धिमाल्य वस्त्राद्यैरलंकारैश्च भूषितौ । भङ्गाङ्गदावैमासेतां यमवैश्रवणाविव ॥७७॥ नलनीलप्रभृतयः शतशोऽन्ये च पार्थिवाः । आसीना रेजुरत्यन्तमावृत्य रघुनन्दनम् ॥ ७८ ॥ पञ्चसद्गन्धताम्बूलगन्धसंगतमारुता । विभूषण कृतोद्योता सा सभेन्द्रसमोपमा ।। ७९ ।। विस्मित्य सुचिरं रामं प्रीतः पावनिरब्रवीत् । समक्षं न गुणा ग्राह्या भवतो रघुनन्दन ॥ ८० ॥ इहापि निखिले लोके दृश्यते स्थितिरीदृशी । किमपि प्रियवक्तृणां प्रत्यक्षगुणकीर्तनम् ॥ ८१ ॥ आसीद्यस्याधिमाहात्म्यं श्रुतमस्माभिरूर्जितम् । दृष्टः सत्वहितः स त्वं सत्ववान् चक्षुषा स्वयम् ॥८२॥ सर्वसौन्दर्ययुक्तस्य गुणरत्नाकरस्य ते । शुभ्रेण यशसा राजन् जगदेतदलङ्कृतम् ॥ ८३ ॥
सुशोभित अपने-अपने आसनोंपर बैठ गये ||७० || वहाँ जो उत्तम आसनपर विराजमान थे, जिनको भुजा बाजूबन्दसे सुशोभित थी, जो लक्ष्मीके द्वारा सब ओरसे देदीप्यमान थे, जो स्वच्छ नीलवस्त्र धारण किये हुए थे तथा उत्तम हारसे सुशोभित थे ऐसे श्रीराम नक्षत्र सहित उदित हुए चन्द्रमाके समान जान पड़ते थे ।।७१ - ७२।। दिव्य पीताम्बरको धारण करनेवाले तथा हार, केयूर और कुण्डलोंसे अलंकृत लक्ष्मण बिजली सहित मेघ के समान सुशोभित हो रहे थे ||७३ || जिसका सुविस्तृत मुकुट वानरके चिह्नसे युक्त था, तथा देवगज -- ऐरावतके समान जिसका पराक्रम था ऐसा सुग्रीवराजा भी अतिशय बलवान् लोकपालके समान सुशोभित हो रहा था ||७४ || लक्ष्मणके पीछे बैठा विराधित कुमार भी अपने तेजसे ऐसा दिखाई देता था मानो नारायणके समीप रखा हुआ चक्ररत्न ही हो ॥ ७५ ॥
अतिशय बुद्धिमान् रामचन्द्रके समीप हनुमान् भी ऐसा सुशोभित हो रहा था मानो पूर्णचन्द्र के समीप उदित हुआ अत्यन्त देदीप्यमान बुधग्रह ही हो ॥७६॥ सुगन्धित माला तथा वस्त्रादि एवं अलंकारोंसे अलंकृत अंग और अंगद यम तथा वैश्रवणके समान सुशोभित हो रहे थे || ७७ || इनके सिवाय रामको घेर कर बैठे हुए नल, नील आदि सैकड़ों अन्य राजा भी उस समय अत्यधिक सुशोभित हो रहे थे || ७८ ॥ नाना प्रकारकी उत्तम गन्ध से युक्त ताम्बूल तथा सुगन्धित अन्य पदार्थोंके समागमसे जहाँ वायु सुगन्धित हो रही थी तथा जहाँ आभूषणोंके द्वारा प्रकाश फैल रहा था ऐसी वह सभा इन्द्रको सभाके समान जान पड़ती थी ॥७२॥
तदनन्तर चिरकाल तक आश्चर्यमें पड़कर प्रीतियुक्त हनुमान्ने रामसे कहा कि हे राघव ! यद्यपि आपके गुण आपके ही समक्ष नहीं कहना चाहिए क्योंकि इस लोकमें भी ऐसी ही रीति देखी जाती है फिर भी प्रत्यक्ष ही आपके गुण कथन करनेकी उत्कट लालसा है सो ठीक ही है क्योंकि जो प्रिय वक्ता हैं उन्हें प्रत्यक्ष ही गुणोंका कथन करना अद्भुत आह्लादकारी होता है ||८० - ८२ ॥ जिनका बलपूर्णं लोकोत्तर माहात्म्य हमने पहलेसे सुन रखा था उन प्राणि हितकारी धैर्यशाली आपको मैं स्वयं नेत्रोंसे देख रहा हूँ ||८३ || हे राजन् ! आप सम्पूर्ण सौन्दयंसे युक्त हैं,
१. स्वस्थ म. । २. मुकुटमुखारण म । ३. मिवोजसः म । ४. सुगन्ध्य म । ५. ववासन्तौ म. ख., क. । ६. कीतिराम ख ।
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