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पपुराणे
वंशस्थवृत्तम् पुरा विशिष्टं चरितं कृतात्मनां सुचेतसामुत्तमचारुतेजसाम् । महात्मनामन्नतगर्वशालिनो भवन्ति वश्याः पुरुषा बलान्विताः ॥५४॥ ततः समन्तादनुपाल्य मानसं जना यतध्वं सततं सुकर्मणि । फलं यदीयं समवाप्य पुष्कलं रवेः समानामुपयाथ दीप्तताम् ॥५५॥
इत्यार्षे रविषेणाचार्यप्रोक्त पद्मपुराणे महेन्द्रहितासमागमाभिधानं नाम पञ्चाशत्तम पर्व ॥५०॥
गौतम स्वामी कहते हैं कि कृतकृत्य, सुचेता तथा उत्तम सुन्दर तेजको धारण करनेवाले पुण्यात्मा जीवोंका पूर्वचरित ही ऐसा विशिष्ट होता है कि उन्नत गर्वसे सुशोभित बलशाली मनुष्य उनके आधीन-आज्ञाकारी होते हैं ।।५४।। इसलिए हे भव्यजनो! सब ओरसे मनकी रक्षा कर सदा उस शुभ कार्यमें यत्न करो कि जिसका पुष्कल फल पाकर सूर्यके समान दीप्तताको प्राप्त होओ॥५५।। इस प्रकार आर्ष नामसे प्रसिद्ध रविषेणाचार्य कथित पद्मपुराणमें महेन्द्र का पुत्रीके साथ
समागमका वर्णन करनेवाला पचासवाँ पर्व समाप्त हुआ ॥५०॥
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