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पद्मपुराणे
वसन्ततिलकावृत्तम् नानामृगक्षतजपानसुरक्तवक्त्रो दोधुरः कपिलनेत्रमरीचिवक्त्रः । मूर्धोपनीतलसदुज्ज्वलवालपुच्छो व्याघ्रो नखैः खनति पादपमेष मूले ॥४१॥
मन्दाक्रान्ता अन्तः कृत्वा शिशुगणमिमे कामिनीभिः समेतं
दूरन्यस्तप्रचलनयना भूरिशः सावधानाः । किंचिद्र्वाग्रहणचतुराः प्रान्तयाताः कुरङ्गाः ।
पश्यन्ति त्वां विपुलनयनालम्बिनः कौतुकेन ॥४२॥
आर्यावृत्तम् सुन्दरि पश्य वराह दंष्ट्रान्तरलग्नमुस्तमुन्नतसत्त्वम् । अभिनवगृहीतपकं गच्छन्तं मन्थरं सघोणम् ॥४३॥
वंशस्थवृत्तम् अयं प्रयत्नादिव चित्रिताङ्गको विनातिवणे बहभिः सुलोचने । मजत्यतिक्रीडनमर्भकैः समं वनैकदेशे तृणभाजि चित्रकः ॥४४॥
दोधकवृत्तम् श्येनयुवैष लघुभ्रमपक्षो दूरत एव निरूप्य समन्तात् । स्वापमितस्य परं शरमस्य स्तेनयति द्रुतमामिषमास्यात् ॥४५॥
द्रुतविलम्बितवृत्तम् कमलजालकराजितमस्तकः ककुदमुन्नतमाचलितं वहन् । अयमुदात्तरवोऽत्र विराजते सुरमिपुत्रपतिवरविभ्रमः ॥४६॥
लेकर फिर भी उसी तरह निर्भय बैठा है ॥४०॥ इधर नाना मृगोंका रुधिर पान करनेसे जिसका मुख अत्यन्त लाल हो रहा है, जो अहंकारसे फल रहा है, जिसका मख नेत्रोंकी पीली-पीली कान्तिसे युक्त है, तथा चमकीले बालोंसे युक्त जिसकी पूँछ पीछेसे घूमकर मस्तकके समीप आ पहुँची है ऐसा यह व्याघ्र नाखूनोंके द्वारा वृक्षके मूलभागको खोद रहा है ॥४१॥ जिन्होंने स्त्रियोंके साथ-साथ अपने बच्चोंके समूहको बीचमें कर रखा है, जिनके चंचल नेत्र बहुत दूर तक पड़ रहे हैं, जो अत्यधिक सावधान हैं, जो कुछ-कुछ दूर्वाके ग्रहण करने में चतुर हैं और कौतुक वश जिनके नेत्र अत्यन्त विशाल हो गये हैं ऐसे ये हरिण समीपमें आकर तुम्हें देख रहे हैं ॥४२॥ हे सुन्दरि ! धीरे-धीरे जाते हुए उस वराह को देखो, जिसकी दाढोंमें मोथा लग रहा है, जिसका बल अत्यन्त उन्नत है, जिसने अभी हाल नयी कीचड़ अपने शरीरमें लगा रखी है, तथा जिसकी नाक बहुत लम्बी है ॥४३।। हे सुलोचने ! प्रयत्नके बिना ही जिसका शरीर नाना प्रकारके वर्गोंसे चित्रित हो रहा है ऐसा यह चीता इस तृणबहुल वनके एकदेशमें अपने बच्चोंके साथ अत्यधिक क्रीड़ा कर रहा है ।।४४॥ इधर जिसके पंख जल्दी घूम रहे हैं ऐसा यह तरुण वाज-पक्षी दूरसे ही सब ओर देखकर सोते हुए शरभके मखसे बडी शीघ्रताके साथ मांसको छीन रहा है ॥४५॥ इधर जिसका मस्तक कमल जैसी आवर्तसे सुशोभित है; जो कुछ-कुछ हिलती हुई ऊँची काँदौरको धारण कर रहा है, जो विशाल शब्द कर रहा है तथा जो उत्तम विभ्रमसे सहित है ऐसा यह बैल सुशोभित
१. दक्षः म. । २. ते नयति म. । ३. मत्स्यात् म.। ४. अनड्वान् ।
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