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पद्मपुराणे
इति निगदति पद्म केकयीसूनुरूचे
प्रवदसि यदधीशस्त्वं तथाहं करोमि । विविधरसकथाभिः सुन्दरे स्वाश्रये ते
रविपरिचयमुक्तं कालमस्थुः सुखेन ॥ १०२ ॥
इत्यार्षे रविषेणाचार्यप्रोक्ते पद्मचरिते दण्डकारण्यनिवासाभिधानं नाम द्विचत्वारिंशत्तमं पर्व ॥४२॥
इस प्रकार राम कहनेपर लक्ष्मण बोले कि आप स्वामी हो जैसा कहते हो वैसा ही में करता हूँ । इस तरह अपने सुन्दर निवास स्थलमें वे नाना प्रकारको स्नेहपूर्ण कथाएं करते हुए सूर्य परिचयसे रहित वर्षा काल तक सुखसे रहे ||१०२॥
इस प्रकार आर्ष नामसे प्रसिद्ध, रविषेणाचार्य द्वारा कथित पद्मचरितमें दण्डक वन में निवासका वर्णन करनेवाला बयालीसवाँ पर्व समाप्त हुआ ॥ ४२ ॥
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