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पद्मपुराणे आर्याच्छन्दः
रमते कचिदपि चित्तं पुरुषरवेः पूर्वजन्मसंबन्धात् । एषा भवपरिवर्ते सर्वेषां श्रेणिकावस्था || १४८ ॥
इत्यार्षे रविषेणाचार्यप्रोक्ते पद्मपुराणे विटसुग्रीववधाख्यानं नाम सप्तचत्वारिंशत्तमं पर्व ॥४७॥
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गौतम स्वामी कहते हैं कि हे श्रेणिक ! पुरुषोंमें सूर्यं समान रामचन्द्रका भो चित्त किन्हीं में रमणको प्राप्त हुआ सो यह दशा समस्त संसारी जीवोंकी है || १४८||
इस प्रकार आर्ष नामसे प्रसिद्ध, रविषेणाचार्य द्वारा कथित पद्मपुराण में विट सुग्रीव के वधा कथन करनेवाला सैंतालीसवाँ पर्व समाप्त हुआ ||४७ ||
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