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पद्मपुराणे
यत्र यत्र पदन्यासं करोति रघुनन्दनः । तत्र तत्रोरुपद्मानि स्थापितानि महीतले ॥१५॥ शयनान्यासनैः साकं रचितानि यतस्ततः । मणिकांचनचित्राणि सुखस्पर्शधराण्यलम् ॥१६॥ सलवङ्गादिताम्बूलं प्रवराण्यंशुकानि च । महासुगन्धयो गन्धा भास्वन्त्यामरणानि च ॥१७॥ सूदगेहसमेतानि कन्दूशालाशतानि च । बहुभेदान्नपूर्णानि कृतयत्नानि सर्वतः ॥१८॥ गुडेन सर्पिषा दना भूः क्वचिद् माति पकिला। इति कर्तव्यतामाजा जनेनादरिणान्विता ॥१९|| स्वाहारेण क्वचित्तप्ताः पथिकाः स्वेच्छया स्थिताः । प्रसादयन्ति विश्रब्धाः संकथाबद्धगुल्मकाः ॥२०॥ कचिन्ना शेखरी भाति मदिरामत्तलोचनः । क्वचित् सीमन्तिनी गता वकुलामोदवाहिनी ॥२१॥ क्वचिन्नाटयं क्वचिद् गीतं क्वचित्सुकृतसंकथा । क्वचित् कान्तैः समं नार्यो रमन्ते चारुविभ्रमाः ।।२२।। दत्तप्रङ्खलाः कचित् स्मेरैः सकीलैविटपुंगवैः । विलासिन्यो विराजन्ते गीर्वाणगणिकोपमाः ॥२३॥ रामलक्ष्मणयोर्यानि रचितानि ससीतयोः । क्रीडाधामानि कस्तानि नरो वर्णयितुं क्षमः ॥२४॥ नानाभूषणयुक्ताङ्गौ सुमाल्याम्बरधारिणौ । यथेप्सितकृताहारौ श्रिया परमयान्वितौ ॥२५॥ सीता चाक्लिष्टसौभाग्या दुरितासंगवर्जिता । रमते तत्र चेष्टामिः शास्त्रदृष्टामिरुज्ज्वलम् ॥२६॥ तत्र वंशगिरौ राजन् रामेण जगदिन्दुना । निर्मापितानि चैत्यानि जिनेशानां सहस्रशः ॥२७॥ महावष्टम्भसुस्तम्मा युक्तविस्तारतुङ्गताः । गवाक्षहऱ्यावलमीप्रभृत्याकारशोभिताः ॥२८॥ सतोरणमहाद्वाराः सशालाः परिखान्विताः । सितचारुपताकाठ्या बृहद्धण्टारवाचिताः ॥२९॥
थे जो कमलिनीके वनमें बैठे हुए हंसोंके समान सुशोभित हो रहे थे ॥१४|| श्रीराम जहां-जहां चरण रखते थे वहाँ-वहां पृथिवी तलपर बड़े-बड़े कमल रख दिये गये थे॥१५॥ जहां-तहां मणियों और सुवर्णसे चित्रित तथा अतिशय सुखदायक स्पर्शको धारण करनेवाले आसन और सोनेके स्थान बनाये गये थे॥१६।। लवंग आदिसे सहित ताम्बूल, उत्तम वस्त्र, महासुगन्धित गन्ध और देदीप्यमान आभूषण जहां-तहां रखे गये थे ॥१७॥ जो सब ओरसे नाना प्रकारको भोजन-सामग्रीसे यक्त थीं तथा जिनमें रसोई घर अलगसे बनाया गया था ऐसी सैकड़ों भोजनशालाएं वहाँ निर्मित की गयी थीं ॥१८॥ वहाँकी भूमि कहीं गुड़, घी और दहीसे पंकिल (कीचसे युक्त) होकर सुशोभित हो रही थी तो कहीं कर्तव्य पालन करनेमें तत्पर आदरसे युक्त मनुष्योंसे सहित थी ।।१९।। कहीं मधुर आहारसे तृप्त हुए पथिक अपनी इच्छासे बैठे थे तो कहीं निश्चिन्तताके साथ गोष्ठी बनाकर एक दूसरेको प्रसन्न कर रहे थे ॥२०॥ कहीं सेहरेको धारण करनेवाला और मदिराके नशामें झूमते हुए नेत्रोंसे युक्त मनुष्य दिखाई देता था तो कहीं मौलश्रीकी सुगन्धिको धारण करनेवाली नशासे भरी स्त्री दृष्टिगत होती थी॥२१॥ कहीं नाट्य हो रहा था, कहीं संगीत हो रहा था, कहीं पुण्य चर्चा हो रही थी, और कहीं सुन्दर विलासोंसे सहित स्त्रियां पतियोंके साथ क्रीड़ा कर रही थीं ॥२२॥ कहीं मुसकराते तथा लीलासे सहित विट पुरुष जिन्हें धक्का दे रहे थे, ऐसी देव नर्तकियोंके समान वेश्याएं सुशोभित हो रही थीं॥२३।। इस प्रकार सीता सहित राम-लक्ष्मणके जो कोड़ास्थल बनाये गये थे उनका वर्णन करनेके लिए कौन मनुष्य समर्थ है? ॥२४॥ जिनके शरीर नाना प्रकारके आभूषणोंसे सहित थे, जो उत्तमोत्तम मालाएँ और वस्त्र धारण करते थे, जो इच्छानुसार क्रीड़ा करते थे ॥२५॥ और अखण्ड सौभाग्यको धारण करनेवाली तथा पापके समागमसे रहित सीता वहाँ शास्त्र निरूपित चेताओंसे उज्ज्वल क्रीड़ा करती थी॥२६॥ गौतम स्वामी कहते हैं कि हे राजन् ! उस वंशगिरिपर जगत्के चन्द्र स्वरूप रामने जिनेन्द्र भगवान्की हजारों प्रतिमाएं बनवायीं थीं॥२७॥ तथा जिनमें महामजबूत खम्भे लगवाये गये थे, जिनकी चौड़ाई तथा ऊंचाई योग्य थी, जो झरोखे, महलों तथा छपरी आदिको रचनासे शोभित थे, जिनके बड़े-बड़े द्वार तोरणोंसे युक्त थे, जिनमें अनेक शालाएँ निर्मित थीं, जो परिखासे सहित थे, सफ़ेद और सुन्दर पताकाओंसे युक्त थे, बड़े-बड़े
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