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पद्मपुराणे
मृगध्वजो रणोर्मिश्च कलभः केसरी तथा । अङ्गा महीभृतः षमिरमी करटिनां शतैः || १४ || प्रत्येकं पञ्चभिः सप्तिसहस्रैश्च समावृताः । प्राप्ताः कृतमहोत्साहा नयपण्डितबुद्धयः ||१५|| उत्साहयन् छलोद्वृत्तं नयशास्त्रविशारदम् । पञ्चालाधिपमात्मार्थकारिणं ज्ञातकारणम् ॥१६॥ द्विरदानां सहस्रेण तैर्ययूनां च सप्तभिः । पौण्ड्रक्ष्मापतिरालीनः प्रतापं परमं वहन् ||१७|| साधनेन तदग्रेण संप्राप्तो मगधाधिपः । पूर्यमाणो नृपैर्वाहो रैवो नदशतैरिव ॥ १८ ॥ सहस्त्रैरागतोऽष्टामिदन्तिनां जलदविषाम् । अश्वीयेन सुकेशश्च दुर्लभान्तेन वज्रटक् ॥ १९ ॥ सुभद्रो मुभिश्च साधुभद्रश्चे नन्दनः । तुल्या वज्रधरस्यैते संप्राप्ता यवनाधिपाः ॥ २० ॥ अवार्यवीर्यसंप्राप्तः सिंहवीर्यो महीपतिः । वाङ्गः सिंहरथश्चेतौ मातुलौ बलशालिनौ ||२१|| पदातिभी रथैर्नागैः स्थूरीपृष्ठैः प्रतिष्ठितैः । वत्सस्वामी समायातो मारिदत्तोतिभूरिभिः ॥२२॥ आम्वष्टः प्रोष्ठिलो राजा सौवीरो धीरमन्दिरः । प्राप्तौ दुर्वेदसंख्येन साधनेनान्विताविमौ ॥ २३ ॥ एतेऽन्ये च महासत्त्वा राजानः श्रुतशासनाः । अक्षौहिणीभिरायाता दशभिस्त्रिदशोपमाः ॥ २४॥ अमोभिरनुयातोऽहं प्रस्थितो भरतं प्रति । त्वामुदीक्षे यतो लेखदर्शनानन्तरं ततः ||२५|| आगन्तव्यं त्वया प्रीत्या कार्याप्रेक्षितया तथा । पश्यामोऽत्यादरेण त्वां यथा वर्ष कृषीवलाः ॥२६॥ एवं च वाचिते लेखे न यावत्पृथिवीधरः । किंचिदूचे सुमित्रायाः सूनुस्तावदभाषत ॥२७॥
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सो हाथियों और वायुके पुत्र के समान चपल तीन हजार घोड़ोंके साथ आज हमारे पास आ गया है ॥ १२-१३ ॥ बहुत भारी उत्साहके देनेवाले तथा नीति-निपुण बुद्धिके धारक जो मृगध्वज, रणोमि, कलभ और केसरी नामके अंगदेशके राजा हैं वे भी प्रत्येक छह सौ हाथियों तथा पांच हजार घोड़ोंसे समावृत हो आ पहुँचे हैं ॥१४- १५ ॥ जो छलपूर्ण युद्ध करनेमें निपुण है, नीतिशास्त्रका पारगामी है, प्रयोजन सिद्ध करनेवाला है तथा युद्धकी सब गतिविधियोंका जानकार है ऐसे पंचाल देशके राजाको उत्साहित करता हुआ पौण्ड्रदेशका परम प्रतापी राजा, दो हजार हाथियों और सात हजार घोड़ोंके साथ आ गया है ।।१६ - १७॥ जिस प्रकार रेवा नदीके प्रवाहमें सैकड़ों नदियाँ आकर मिलती हैं इसी प्रकार जिसमें अन्य अनेक राजा आ-आकर मिल रहे हैं ऐसा मगध देशका राजा भी पौण्ड्राधिपति से भी कहीं अधिक सेना लेकर आया है ||१८|| वज्रको धारण करनेवाला राजा सुकेश, मेघके समान कान्तिको धारण करनेवाले आठ हजार हाथियों और जिसका अन्त पाना कठिन है ऐसी घोड़ोंकी सेनाके साथ आ पहुँचा है ॥ १९ ॥ जो इन्द्रके समान पराक्रमके धारी हैं, ऐसे सुभद्र, मुनिभद्र, साघुभद्र और नन्दन नामक भवनोंके राजा हैं वे भी आ गये हैं ||२०|| जो अवार्यं वीर्यं से सम्पन्न है, ऐसा राजा सिंहवीयं, तथा वंग देशका राजा सिंहरथ ये दोनों मेरे मामा हैं सो बहुत भारी सेनासे सुशोभित होते हुए आये हैं ॥ २१ ॥ वत्स देशका राजा मारिदत्त बहुत भारी पदाति, रथ, हाथी और उत्तमोत्तम घोड़ोंके साथ आया है ||२२|| अम्बष्ठ देशका राजा प्रोष्टि और सुवीर देशका स्वामी धीरमन्दिर ये दोनों असंख्यात सेनाके साथ आ पहुँचे हैं ||२३|| तथा इनके सिवाय जो और भी महापराक्रमी एवं देवोंकी उपमा धारण करनेवाले अन्य राजा हैं वे मेरी आज्ञा श्रवण कर सेनाओंके साथ आ चुके हैं ||२४|| इन सब राजाओंको साथ लेकर मैंने अयोध्याके राजा भरतके प्रति प्रस्थान किया है, सो तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है, अतः तुम्हें पत्र देखने के बाद तुरन्त ही यहाँ आना चाहिए। तुम्हारी मुझमें प्रीति ही ऐसी है कि जिससे आप दूसरे कार्यके प्रति दृष्टि भी नहीं डालेंगे । जिस प्रकार किसान वर्षाको बड़े आदरसे देखते हैं, उसी प्रकार हम भी तुम्हें बड़े आदर से देखते हैं || २५-२६॥ इस प्रकार पत्र बाँचे जानेपर राजा पृथिवीधर
१. अश्वानाम् । २. सानुभद्रस्य नन्दन म ।
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