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षत्रिंशत्तमं पर्व
१५१ ज्योत्स्नया सहितश्चन्द्रो यस्मिन् काले समागतः । लक्ष्मीधरोऽपि तत्रैव सहितो बालयानया ॥६॥ यथा ज्ञापयसि स्पष्टमेवमेतदिति ब्रुवन् । लक्ष्मीधरोऽन्तिके तस्थौ हिया किंचिनताननः ॥६२॥ उत्फुल्ल नेत्रराजीवाः प्रमोदार्पितचेतसः । प्रसन्नवक्त्रतारेशाः सुशीला विस्मयान्विताः ॥६३॥ कथामिः स्मितयुक्तामिः याताभिः स्थानयुक्तताम् । ते तत्र त्रिदशच्छाया नष्टनिद्राः सुखं स्थिताः ॥६४॥ सख्योऽत्र वनमालायाः समये बोधमागताः । शयनीयं तथा शून्यं ददृशुस्वस्तमानसाः ॥६५॥ ततोऽश्रुपूर्णनेत्राणां गवेषव्याकुलात्मनाम् । तासां हाकारशब्देन प्रबोधं भेजिरे भटाः ॥६६॥ उपलभ्य च वृत्तान्तं सन्नझारूढसप्तयः । शूराः पदातयश्चान्ये कुन्तकार्मुकपाणयः ॥७॥ दिशः सर्वाः समास्तीर्य दधावुभ्रान्तमानसाः । मोतिप्रीतिसमायुक्ताः समीरस्येव शावकाः ॥६८।। ततः कैरपि ते दृष्टाः समेता वनमालया। निवेदिताश्च शेषस्य जनस्य जववाहनैः ॥६९॥ ज्ञातनिश्शेषवृत्तान्तैस्तैरलं संमदान्वितैः । पृथिवीधरराजस्य कृतं दिष्टयाभिवर्धनम् ॥७०॥ उपायारम्भमुक्तस्य तवाद्य नगरे प्रभो । जगाम प्रकटीमावं महारत्ननिधिः स्वयम् ॥७॥ पपात नभसो वृष्टिविना मेघसमुद्भवात् । परिकर्मविनिर्मुक्तं सस्य क्षेत्रात् समुद्गतम् ॥७२॥ जामाता लक्ष्मणोऽयं ते वर्तते निकटे पुरः। जीवितं हातुमिच्छन्त्या संगतो वनमालया ॥७३॥ पद्मश्च सीतया साकं परमो भवतः प्रियः । शच्येव सहितो देवेन्द्रोऽयमत्र विराजते ॥७॥ वदतामिति भृत्यानां वचनैः प्रियशंसिमिः । सुखनिर्झरचेतस्को मुमूर्छ नृपतिः क्षणम् ॥७५॥
मैं समान प्रवृत्त चेष्टासे जानती हूँ सुनिए ॥६०॥ जिस समय चन्द्रमा चन्द्रिका अर्थात् चांदनीके साथ आया उसी समय लक्ष्मण भी इस बालाके साथ आया है इससे स्पष्ट है कि इसकी चन्द्रमाके साथ मित्रता है ॥६१।। जैसा आप समझ रही हैं बात स्पष्ट ही ऐसी है इस प्रकार कहते हुए लक्ष्मण लज्जासे कुछ नतानन हो पास ही में बैठ गये ॥६२।। इस तरह जिनके नेत्रकमल विकसित थे, जो आनन्दसे विभोर थे, जिनके मुखरूपी चन्द्रमा अत्यन्त प्रसन्न थे, जो सुशील थे, आश्चयंसे सहित थे, देवोंके समान कान्तिके धारक थे तथा जिनकी निद्रा नष्ट हो गयी थी ऐसे वे सब, स्थानकी अनुकूलताको प्राप्त मन्दहास्य युक्त कथाएँ करते हुए वहाँ सुखसे विराजमान थे ॥६३-६४।। यहां समयपर जब वनमालाकी सखियाँ जागी तो शय्याको सूनी देख भयभीत हो गयीं ॥६५॥ तदनन्तर जिसके नेत्र आंसुओंसे व्याप्त थे तथा जो वनमालाकी खोजके लिए छटपटा रही थीं ऐसी उन सखियोंकी हाहाकारसे योद्धा जाग उठे ॥६६॥ तथा सब समाचार जानकर तैयार हो कुछ तो घोड़ोंपर आरूढ़ हुए और कुछ भाले तथा धनुष हाथमें ले पैदल ही चलनेके लिए तैयार हुए ॥६७॥ इस प्रकार जिनके चित्त घबड़ा रहे थे, जो भय और प्रीतिसे युक्त थे तथा जो शीघ्र गतिमें वायुके बच्चोंके समान जान पड़ते थे ऐसे योद्धा समस्त दिशाओंको आच्छादित कर दौड़े ॥६८॥
तदनन्तर कितने ही योद्धाओंने वनमालाके साथ बैठे हुए उन सबको देखा और देखकर शीघ्रगामी वाहनोंसे चलकर शेषजनोंके लिए इसकी खबर दी ॥६९।। तदनन्तर समस्त समाचारको ठीक-ठीक जानकर जो अत्यधिक हर्षित हो रहे थे ऐसे कुछ योद्धाओंने पृथिवीधर राजाके लिए भाग्यवृद्धिकी सूचना दी ॥७०।। उन्होंने कहा कि हे प्रभो ! उपायारम्भसे रहित होनेपर भी आज
रमें स्वयं ही महारत्नोंका खजाना प्रकट हुआ है॥७॥ आज आकाशसे बिना मेके ही वर्षा पडी है तथा जोतना, बखेरना आदि क्रियाओंके बिना ही खेतसे धान्य उत्पन्न हुआ है ॥७२॥ आपका जामाता लक्ष्मण नगरके निकट ही वर्तमान है तथा प्राण छोड़नेकी इच्छा करनेवाली वनमालाके साथ उसका मिलाप हो गया है ।।७३|| सीता सहित राम भी जो कि आपको अत्यन्त प्रिय हैं इन्द्राणी सहित इन्द्रके समान यहीं सुशोभित हो रहे हैं ।।७४। इस प्रकार कहनेवाले भृत्योंके प्रिय सूचक वचनोंसे जिसके हृदयमें सुखका झरना फूट पड़ा था ऐसा राजा पृथिवीपर हर्षाति
आपके
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