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पद्मपुराणे
गोघण्टारव संपूर्ण नानासस्योपशोभितम् । अवन्तीविषयं स्फीतं ग्रामपत्तनसंकुलम् ॥४१॥ मार्ग तत्र कियन्तं चिदतिक्रम्य जनोज्झितम् । विषयैकान्तमापुस्ते पृथं स्वाकारधारिणः ॥४२॥ छायां न्यग्रोधजां श्रिवा विश्रान्तास्ते परस्परम् । जगुः कस्मादयं देशो दृश्यते जनवर्जितः ॥ ४३ ॥ सस्यानि कृष्टपच्यानि दृश्यन्तेऽत्रातिभूरिशः । उद्यानपादपाचैत्ये फलैः पुष्पैश्च शोभिताः ॥ ४४ ॥ पुण्ड्रेक्षुवाटसंपन्ना ग्रामास्तुङ्गावनिस्थिताः । सरांस्यच्छिन्नपद्मानि युक्तानि विविधैः खगैः ||४५ || अध्वायं घटकैर्भग्नैः शकटैश्च विशङ्कटः । करण्डैः कुण्डकैर्दण्डैः कुण्डिकाभिः कटासनैः ॥४६॥ विकीर्णास्तण्डुला भाषा मुद्गाः सूर्यादयस्तथा । वृद्धोक्षोयं मृतो जीर्णगोण्यस्योपरि तिष्ठति ॥ ४७॥ देशोऽयमतिविस्तीर्णः शोभते न जनोज्झितः । अत्यन्तविषयासङ्गो यथा दीक्षासमाश्रितः ॥४८॥ ततोऽत्यन्तमृदुस्पर्शे निषण्णं रत्नकम्बले | देशोद्वासकृतालापं राम पार्श्वस्थकार्मुकम् ||४९|| पद्मगर्भलामाभ्यां पाणिभ्यां पूजितेहिता । द्वाग्विश्रमयितुं सक्ता सीता प्रेमाम्बुदीर्घिका ||५० || उत्सार्य चोरलग्नां तां सादरक्रमकोविदः । संवाहयितुमासक्तो लक्ष्मणो ज्यायसोदितः ॥५१॥ निरूपय क्वचित्तावद् ग्रामं नगरमेव वा । घोषं वा लक्ष्मण क्षिप्रं श्रान्तेयं हि प्रजावती ॥५२॥ ततोऽन्यस्यातितुङ्गस्य वृक्षस्योर्ध्वसमाश्रितः । दृश्यते किंचिदत्रेति पद्मेनोच्यत लक्ष्मणः ॥५३॥ सोऽवोचद्देव पश्यामि रूपपर्वतसंनिभान् । शारदाभ्रसमुत्तुङ्गः शृङ्गजालैर्विराजितान् ॥ ५४ ॥
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वह देश गायोंकी गरदनोंमें बँधे घण्टाओंके शब्द से परिपूर्ण था, नाना प्रकार के धान्यसे सुशोभित था, विस्तृत था और ग्राम तथा नगरोंसे व्याप्त था |४०-४१||
तदनन्तर सुन्दर आकारको धारण करनेवाले वे तीनों, कितना ही मार्ग उल्लंघकर एक अतिशय विस्तृत ऐसे स्थान में पहुंचे जिसे मनुष्य छोड़कर भाग गये थे ||४२|| एक वट वृक्षकी छाया में बैठकर विश्राम करते हुए वे परस्पर कहने लगे कि यह मनुष्योंसे रहित क्यों दिखाई देता है ? ||४३|| यहाँ अनेकों धानके पके खेत दिखाई दे रहे हैं, बगीचों के ये वृक्ष फलों और फूलोंसे सुशोभित हैं ||४४ ॥ ऊँची भूमिपर बसे गाँव पौंडों और ईखोंके बागोंसे युक्त हैं, जिनके कमलों को किसी ने तोड़ा नहीं है ऐसे सरोवर नाना प्रकार के पक्षियोंसे युक्त हैं ||४५ ॥ यह मार्ग फूटे घड़ों, गाड़ियों, पिटारों, कूड़ों, कुण्डिकाओं और चटाई आदि आसनोंसे व्याप्त है ||४६|| यहाँ चावल, उड़द, मूंग तथा सूप आदि बिखरे हुए हैं और इधर यह बूढ़ा बैल मरा पड़ा है तथा इसके ऊपर फटी पुरानी गोन लदी हुई है || ४७|| यह इतना बड़ा देश मनुष्योंसे रहित हुआ ठीक उस तरह शोभित नहीं होता जिस प्रकार कि कोई दीक्षा लेनेवाला साधु विषयोंकी आसक्ति में पड़कर शोभित नहीं होता ||४||
तदनन्तर देशके ऊजड़ होनेकी चर्चा करते हुए राम अत्यन्त कोमल स्पर्शवाले रत्नकम्बलपर बैठ गये और पास ही उन्होंने अपना धनुष रख लिया || ४९ || जो प्रशस्त चेष्टाकी धारक और प्रेमरूपी जलकी मानो वापिका ही थी ऐसी सीता कमलके भीतरी दलके समान कोमल हाथोंसे शीघ्र ही रामको विश्राम दिलाने अर्थात् उनके पादमर्दन करनेके लिए तैयार हुई ||५० || तब आदरपूर्णं क्रमको जाननेवाला लक्ष्मण, बड़े भाईकी आज्ञा प्राप्त कर जाँघोंसे लगी सीताको अलग कर स्वयं पादमर्दन करने लगा || ५१|| रामने लक्ष्मणसे कहा कि हे भाई! तेरी यह भावज बहुत थक गयी है इसलिए शीघ्र ही किसी गाँव, नगर अथवा अहीरोंको बस्तीको देखो ॥५२॥ तब लक्ष्मण एक बड़े वृक्षकी शिखरपर चढ़ा । रामने उससे पूछा कि क्या यहाँ कुछ दिखाई देता है ? ॥५३॥ लक्ष्मणने कहा कि हे देव ! जो चाँदीके पर्वत के समान हैं, शरद् ऋतुके बादलोंके समान ऊँचे
१. चारु म ।
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