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कर्म - अस्तित्व के मूलाधार : पूर्वजन्म और पुनर्जन्म - २
'अदृष्ट (कर्म) के साथ ही पूर्वजन्म - पुनर्जन्म का अटूट सम्बन्ध
वैशेषिक दर्शन के इस सिद्धान्त के विषय में प्रश्न होता है कि इच्छाद्वेषपूर्वक की जाने वाली अच्छी-बुरी प्रवृत्ति (क्रिया) अच्छा (सुखरूप) और बुरा (दुःखरूप) फल देती है; किन्तु प्रवृत्ति (क्रिया) तो क्षणिक है, वह तो नष्ट हो जाती है, फिर सभी क्रियाओं का फल इस जन्म में नहीं मिलता, प्रायः उनका फल जन्मान्तर में मिलता है, अतः क्षणिक क्रिया ( प्रवृत्ति) अपना फल जन्मान्तर में कैसे दे सकती है ? इसका समाधान 'अदृष्ट' की कल्पना करके किया गया है, उस क्रिया और फल के बीच में दोनों को जोड़ने वाला अदृष्ट रहता है। क्रिया को लेकर जन्मा हुआ वह अदृष्ट आत्मा में रहता है और सुखरूप या दुःखरूप फल आत्मा में उत्पन्न करके, उसके द्वारा पूरा भोग लिये जाने के बाद ही वह (अदृष्ट) निवृत्त होता है। शुभप्रवृत्तिजन्य अदृष्ट को धर्म और अशुभप्रवृत्तिजन्य अदृष्ट को अधर्म कहा जाता है। धर्मरूप अदृष्ट आत्मा में सुख पैदा करता है, और अधर्मरूप अदृष्ट दुःख । वस्तुतः अदृष्ट का कारण क्रिया (प्रवृत्ति) को नहीं, इच्छा - द्वेष को ही माना गया है। इच्छाद्वेषसापेक्ष क्रिया ही अदृष्ट की उत्पादिका है। ' इन सब युक्तियों से नित्य आत्मा के साथ कर्म और पुनर्जन्म-पूर्वजन्म का अविच्छिन्न प्रवाह सिद्ध होता है।
१. वैशेषिक दर्शन ( सूत्र ) प्रशस्तपाद भाष्य (गुण- साधर्म्यप्रकरण) २. (क) सांख्यसूत्र ६/४१
(ख) वही ६ / १६
३. सांख्यसूत्र - प्रवचन भाष्य - ६ / ९
४. "संसरति निरुपभोगं भावैरधिवासितं लिङ्गम् ॥"
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सांख्यदर्शन में कर्म और पुनर्जन्म - सांख्यदर्शन का भी यह मत है कि पुरुष (आत्मा) अपने शुभाशुभ कर्मों के फलस्वरूप नाना योनियों में परिभ्रमण करता है। परन्तु सांख्यदर्शन की यह मान्यता है कि "यद्यपि शुभाशुभ कर्म स्थूलशरीर के द्वारा किये जाते हैं, किन्तु वह (स्थूल शरीर) कर्मों के संस्कारों का अधिष्ठाता नहीं है, उनका अधिष्ठाता है-स्थूलशरीर से भिन्न सूक्ष्म शरीर । सूक्ष्म शरीर का निर्माण पांच ज्ञानेन्द्रिय, पांच तन्मात्राओं, महत्तत्व (बुद्धि) और अहंकार से होता है। मृत्यु होने पर स्थूल शरीर नष्ट हो जाता है, सूक्ष्म शरीर विद्यमान रहता है । प्रत्येक संसारी आत्मा (पुरुष) के साथ यह सूक्ष्म शरीर रहता है, इसे आत्मा का लिंग भी कहते हैं। यही पुनर्जन्म का आधार है । " सांख्यकारिका में बताया गया लिंग (सूक्ष्म) शरीर बार-बार स्थूल शरीर को ग्रहण करता है और
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-सांख्यकारिका ४०
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