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५३० कर्म-विज्ञान : कर्म का विराट् स्वरूप ( ३ ) .
“जो नौका छिद्रयुक्त है वह संसार - समुद्र से पार नहीं जा सकती; किन्तु जो नौका छिद्ररहित है, वही पार जा सकती है। शरीर नौका है। जीव (आत्मा) नाविक है और (कर्मजल से परिपूर्ण) संसार समुद्र हैं, जिसे महर्षि पार कर जाते हैं ।" "
समुद्र में नौका चलाने वाले नाविक तीन प्रकार के होते हैं - (१) अकुशल, (२) अर्धकुशल और (३) कुशल । यदि नाविक कुशल नहीं होता है, तो उसकी नौका समुद्र की उत्ताल तरंगों के थपेड़ों से आहत होकर जर्जर और सच्छिद्र हो जाती है । फिर वह थोड़े से ज्वार या तूफान से 'डांवाडोल हो जाती है। जो नाविक कुछ कुशल होता है, उसकी नौका उत्ताल तरंगों के थपेड़ों के कुछ क्षतिग्रस्त एवं छिद्रयुक्त तो हो जाती है परन्तु बार-बार छिद्र बंद करते रहने, आते हुए पानी को रोकते रहने तथा अंदर जमा हुए पानी को समय-समय पर उलीचते रहने से उसकी नौका समुद्र में आगे से आगे बढ़ती रहती है। इन दोनों के विपरीत जो नाविक अत्यधिक कुशल होते हैं, वे समुद्री तूफानों और ज्वार के समय पाल बाँध कर तथा सुरक्षित जलमार्ग से नौका को ले जाकर वे अपनी सुदृढ़ नौका को जर्जर और सच्छिद्र नहीं होने देते।
इसी प्रकार कर्मजल से परिपूर्ण संसाररूपी महासमुद्र में भी तीन प्रकार के नाविक होते हैं। जो अकुशल नाविक होते हैं, उनकी नौका संसार-समुद्र में पापों का ज्वार आने से तथा अशुभ कर्मों की उत्ताल तरंगों की मार से जर्जर और सच्छिद्र हो जाती है और शीघ्र ही पापकर्म परिपूर्ण संसार-समुद्र में डूब जाती है। दूसरे प्रकार के नाविक अर्धकुशल होते हैं। उनकी जीवन नौका सच्छिद्र होते हुए भी डूबती-उतराती रहती है। दान, व्रत, नियम आदि पुण्य से अपनी नैया की वे मरम्मत करते रहते हैं। तीसरे प्रकार के अतिकुशल नाविक वे हैं, जो शुभ - अशुभ कर्म जल के ज्वार के समय डूबते-उतराते नहीं । कष्टों, परीषहों, विपत्तियों के अंधड़ों और तूफानों के समय समभावरूपी चप्पू से अपनी जीवन नैया को खेते हुए शुद्ध और प्रशान्त कर्मजल में आगे से आगे संवर- निर्जरा के जल मार्ग से बढ़ते रहते हैं। ऐसे महाभाग महर्षि अतिकुशल नाविक होते हैं, जो एक दिन संसार-समुद्र को पार करके सर्वकर्म-जल से सर्वथा मुक्त हो जाते हैं।
१. जा उ अस्साविणी नावा, न सा पारस्स गामिणी । जा निरस्साविणी नावा, सा उ पारस्स गामिणी ॥ सरीरमाहु नाव त्ति जीवो वुच्चइ नाविओ । संसारो अण्णवो वुत्तो, जं तरंति महेसिणो ॥
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- उत्तराध्ययन २३/७१,७३
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