Book Title: Karm Vignan Part 01
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 617
________________ कर्म के कालकृत त्रिविध रूप ५९५ ने दूसरे ही किसी मनुष्य को हत्या के अपराधी के रूप में उपस्थित किया है । फिर तो केस चला। ठोस साक्षी और प्रमाण दिये गए, और वह नकली हत्यारा अपराधी सिद्ध हुआ । सेशन जज निश्चितरूप से जानते थे कि यह नकली हत्या अपराधी वास्तव में हत्यारा नहीं है । परन्तु कानून तो सबूत और साक्षी के आधार पर चलता है। अतः न्यायाधीश को कायदे के अनुसार प्रमाण और साक्षी के आधार पर न्याय (जजमेंट) देना ही पड़ता है। उसमें न्यायाधीश का अपना प्रत्यक्ष अनुभव काम नहीं आता। इसलिए सेशनजज को उस नकली हत्या - अपराधी को फांसी की सजा फरमाने के लिए बाध्य होना पड़ रहा था । सेशन जज प्रखर वेदान्ती और ईश्वरीय कर्म के कानून के पक्के विश्वासी थे। उन्हें लगा कि इस केस में असली हत्यारा बच रहा है और निर्दोष नकली हत्यारा मारा जाएगा। इसलिए कोर्ट में हत्या की सजा का हुक्म फरमाने से पहले सेशन जज ने उस नकली हत्या अपराधी को अपने चेम्बर में बुलाकर पूछताछ की। नकली अपराधी रोते-रोते कहने लगा- "मैं बिलकुल निर्दोष हूँ। मैंने यह हत्या नहीं की है। मैं व्यर्थ ही मारा जा रहा हूँ। क्योंकि पुलिस को असली हत्यारा मिला नहीं, इसलिए पहले के मेरे व्यक्तिगत (Private) कारनामों के आधार पर पुलिस ने मुझे पकड़कर मेरे विरुद्ध ठोस प्रमाण प्रस्तुत कर दिये और कोर्ट की दृष्टि में कानून के अनुसार मैं ही हत्यारा भी सिद्ध हो गया हूँ। "" . सेशन जज ने कहा- "मैं इस घटना को भलीभाँति जानता हूँ। असली हत्यारे को मैंने अपनी आँखों से देखा है। मैं उसे पहचानता भी हूँ और तू निर्दोष है यह भी मैं पूरा जानता हूँ । परन्तु मेरे जजमेंट (फैसले) में मैं इस बात को कानून के अनुसार ला नहीं सकता । कानून प्रमाण के आधार पर चलता है। और प्रमाण पूर्णरूप से तुम्हारे विरूद्ध होने से मैं कानून के अनुसार तुझे हत्यारा सिद्ध करके फांसी की सजा दूँगा । परन्तु ईश्वरीय कर्म के कानून में कहीं गफलत तो नहीं है, इसकी प्रतीति करने हेतु मैं तुझसे प्राइवेट में एक प्रश्न पूछता हूँ। उसका जबाब तू मुझे सही-सही और सच्चा देना। मृत्यु की घड़ी में तू बिलकुल झूठ मत बोलना । मेरा सवाल यह है कि " तूने किसी समय किसी की हत्या की थी क्या ? " नकली हत्या - अपराधी ने गद्गद स्वर में ईश्वर की साक्षी से सत्य कह दिया कि मैंने भूतकाल में दो हत्याएँ की थीं। उनके केस (अभियोग) १. कर्मनो सिद्धान्त (हीराभाई ठक्कर) से पृ. ९-१० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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