Book Title: Karm Vignan Part 01
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 628
________________ ६०६ : कर्म-विज्ञान : कर्म का विराट् स्वरूप, (३) अन्धविश्वास, अज्ञान एवं मिथ्या - आचरण के चक्कर में पड़े हुए व्यक्ति सम्यग्ज्ञान के उदित होते ही इन सबको छोड़ देते हैं, अथवा ये सब छूट जाते हैं। वैसे ही आत्मा को अपने ज्ञानमय स्वभाव का सम्यक्भान, विश्वास एवं स्वरूपाचरणरूप आचरण हो जाए तो समस्त संचित घाती कर्मों से मुक्ति हो सकती है। शेष रहे संचित अघातीकर्म भी उसी जीवनकाल में शरीर छूटने के साथ ही छूट जाते हैं। इस प्रकार संचित कर्मों से भी मुक्ति प्राप्त करना कठिन नहीं है । ' १. 'कर्मनो सिद्धान्त' से भावांश उद्धृत पृ. ६४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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