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५५० कर्म - विज्ञान : कर्म का विराट् स्वरूप (३)
'ब्रेडले' नामक दार्शनिक के अनुसार पूर्ण आत्मसाक्षात्कार के लिए नैतिकता (शुभाशुभ) के क्षेत्र से ऊपर उठना होगा; तभी ईश्वर से तादात्म्य स्थापित किया जा सकेगा। वहाँ शुभ और अशुभ का द्वन्द्व या विरोधाभास समाप्त हो जाएगा।
निष्कर्ष यह है कि शुभाशुभ का क्षेत्र व्यावहारिक नैतिकता का है,. जिसका आचरण समाजसापेक्ष है, जबकि पारमार्थिक नैतिकता (आध्यात्मिकता) का क्षेत्र शुद्ध चेतना का है, अनासक्त वीतराग दृष्टि का है, जो व्यक्तिसापेक्ष है। उसका अन्तिम लक्ष्य व्यक्ति को बन्धन से बचाकर मुक्ति (पूर्ण स्वतंत्रता) की ओर ले जाना है।
यही कर्म के शुभ, अशुभ और शुद्ध रूप का मूलाधार है।
१. (क) देखें - इथिकल स्टडीज पृ. ३१४,३४२
(ख) जैनकर्मसिद्धान्त : तुलनात्मक अध्ययन (डॉ. सागरमल जैन) पृ. ४७
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