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सकाम और निष्काम कर्म : एक विश्लेषण ५६१
कि काम्य (कामनामूलक, तीव्रकषायमूलक) कर्मों का न्यास (त्याग) को ही विद्वानों ने संन्यास= कर्मत्याग कहा है। कई विचक्षण पुरुषों ने सर्वकर्मफल-त्याग को ही वास्तविक कर्मत्याग या निष्काम कर्म कहा है। ' जैनदृष्टि से सर्वकाम - त्यागी ही वास्तविक त्यागी साधक
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जैनशास्त्र दशवैकालिकसूत्र में भी कहा गया है कि 'जो कामों (विविध कामनाओं तथा वासनाओं = इच्छाकामों और मदनकामों) का त्याग (निवारण) नहीं कर सकता वह पद पद पर संकल्प - विकल्पों के वशीभूत होकर विषाद पाता है।" जैसा कि पहले कहा गया था - 'यह वस्तु मेरी हो जाए, मैं इसका उपभोग करूँ, मेरे पास यह वस्तु हर समय बनी रहे, अथवा मेरे पास सुन्दर-सुन्दर वस्त्र, आभूषण, सुगन्धित पदार्थ, उत्तमोत्तम शयनासन, मनोज्ञ सुन्दरियों का समागम आदि बना रहे, ये और इस प्रकार की कामनाएँ और वासनाएँ मन ही मन संजोता रहता है, मगर उन वस्तुओं की प्राप्ति, अथवा अपने तप, संयम और त्याग के फल के रूप में उनकी प्राप्ति अपने अधीन नहीं है, वह वस्तुतः (कर्म) त्यागी (या निष्कामकर्मी) नहीं कहलाता। सच्चा त्यागी (कर्म - त्यागी या निष्काम कर्मी) उसी को कहा जाता है, जो उत्तमोत्तम वस्त्राभूषणादि तथा इन्द्रियों के मनोज्ञ विषयों या पदार्थों की प्राप्ति स्वाधीन होने पर भी उनका स्वेच्छा से मन से त्याग कर देता है, अन्तःकरणचतुष्टय से उनकी प्राप्ति या स्वामित्व - प्राप्ति की कामना तक नहीं करता। इसलिए काम (विविध कामना) त्यागी को ही वहाँ त्यागी कहा गया है, न कि कर्म (कार्य) त्यागी को । २ 'निष्कामकर्मी साधक 'कर्म' को न पकड़कर कर्म के मूल 'काम' को पकड़ता है
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कुत्ता बन्दूक से निकली हुई गोली या बन्दूक को पकड़ने के लिए लपकता है, जबकि सिंह बन्दूक या गोली को न पकड़कर बन्दूक या गोली चलाने वाले पर झपटता है । यही सिद्धान्त यहाँ लागू होता है। निष्काम कर्म-युक्त साधक कर्म (कार्य) को न पकड़कर उसके कारणभूत 'काम' (कामना - वासना) को पकड़ता है। जैसे - डाली काट डालने से वृक्ष नष्ट नहीं होता; वह नष्ट होता है, उसके मूल को उखाड़ने से । डाली काट देने
१. काम्यानां कर्मणां न्यास, संन्यासं कवयो विदुः । सर्वकर्मफलत्यागं, प्राहुस्त्यागं विचक्षणाः ।
२.
'जे कामे न निवारए । .पए पए विसीयन्तो संकप्पस्स वसं गओ ॥ वत्य-गंधमलंकारं इत्यीओ सयणाणि य । अच्छंदा. जे न भुंजंति न से चाइत्ति वुच्चइ ॥
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- गीता १८/२
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