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कर्म - अस्तित्व के मूलाधार पूर्वजन्म और पुनर्जन्म - २
त्रैकालिक चेतना को स्वीकार नहीं करते। उनका मन्तव्य है - चार या पांच महाभूतों के विशिष्ट संयोग से शरीर में एक विशेष प्रकार की चेतना (शक्ति) उत्पन्न होती है। इस विशिष्ट प्रकार के संयोजन का विघटन होते ही वह चेतनाशक्ति समाप्त हो जाती है। जब तक जीवन, तभी तक चेतना। जीवन (शरीर) समाप्त होते ही चेतना भी समाप्त । चेतना (स्वतंत्र) पहले भी नहीं थी, पीछे भी नहीं रहती । इसलिए न तो पुनर्जन्म है और न ही पूर्वजन्म। जो कुछ है, वह वर्तमान में है, न ही अतीत में है और न भविष्य में। यह वर्ग प्रत्यक्षवादी तथा इहजन्मवादी है । ""
पुनर्जन्म का निषेध करने वाला द्वितीय वर्ग भी प्रकारान्तर से उसका समर्थक
दूसरा - पुनर्जन्म - पूर्वजन्म का निषेध करने वाला वर्ग आत्मा को स्वतंत्र तत्त्व के रूप में मानता है; कर्म और कर्मफल को भी मानता है। इस वर्ग में यहूदी, ईसाई और इस्लांमधर्मी (मुसलमान) आदि एकजन्मवादी आते हैं। इनकी मान्यता यह है कि मृत्यु के बाद आत्मा ( रूह या सोल - soul) नष्ट नहीं होती। वह कयामत (प्रलय) या न्याय (इन्साफ) के दिन तत्सम्बन्धी देव, खुदा या गॉड (God) के समक्ष उपस्थित होती है। और वे उसे उसके कुर्मानुसार जन्नत - बहिश्त (स्वर्ग या हेवन - Heaven ) अथवा दोज़ख (नरक या हैल-Hell) में भेज देते हैं।
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सामान्यतया यह कहा जाता है कि ईसाई और मुस्लिम धर्मों में पुनर्जन्म की मान्यता नहीं है; परन्तु उनके धर्मग्रन्थों एवं मान्यताओं पर 'बारीक दृष्टि डालने से प्रतीत होता है कि प्रकारान्तर से वे भी पुनर्जन्म की वास्तविकता को मान्यता देते हैं और परोक्ष रूप से उसे स्वीकार करते हैं ।
वैसे देखा जाए तो इस्लाम धर्म और ईसाई धर्म में भी प्रकारान्तर से प्रलय के उपरान्त जीवों के पुनः जागृत एवं सक्रिय होने की बात कही जाती है, जो पुनर्जन्म का ही एक विचित्र और विलम्बित रूप है।
'विजडम ऑफ सोलेमन' ग्रन्थ में ईसामसीह के वे कथन उद्धृत हैं, जिनमें उन्होंने पुनर्जन्म का प्रतिपादन किया था। उन्होंने अपने शिष्यों से एक दिन कहा था-"पिछले जन्म का 'एलिजा' ही अब 'जॉन बैपटिस्ट' के रूप में जन्मा था। "
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१. देखें- "घट घट दीप जले " ( युवाचार्य महाप्रज्ञ) में पूर्वजन्म - पुनर्जन्म पर प्रवचन पृ. ५४
२. अखण्डज्योति ( मासिक पत्र) जुलाई १९७९ के 'पूर्वजन्म के संचित संस्कार' लेख से . साभार संक्षेप पृ. ११
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