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कर्म-विज्ञान : कर्म का अस्तित्व (१)
प्रकट किया गया है- "मृत्यु देखने के लिए ही जीवन का अन्त है। वस्तुतः कोई मरता नहीं, जीवन शाश्वत है।""
यहूदी विद्वान् 'सोलमन' ने लिखा है- "इस जीवन के बाद भी एक जीवन है। देह मिट्टी में मिलकर एक दिन समाप्त हो जाएगी, फिर भी जीवन अनन्तकाल तक यथावत् बना रहेगा । "
दार्शनिक 'नशादसृश' ने कहा है- आत्मा की अमरता को माने बिना मनुष्य को निराशा और उच्छृंखलता से नहीं बचाया जा सकता। यदि मनुष्य को आदर्शवादी बनाना हो तो अविनाशी जीवन (जीव- आत्मा) औरं (पुनर्जन्म तथा) कर्मफल की अनिवार्यता के सिद्धान्त उसके गले उतारने ही पड़ेंगे।"१
प्रसिद्ध साहित्यकार 'विक्टर ह्यूगो ने लिखा है- मैं सदा विश्वास करता रहा- शरीर को तो नष्ट होना ही है, पर आत्मा को कोई भी घेरा कैद नहीं कर सकता। उसे उन्मुक्त विचरण करने (एक जन्म से दूसरे जन्म में जाने) का अवसर सदैव मिलता रहेगा । '
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एक बार 'प्लेटो' ने 'सुकरात' से पूछा - "आप सभी विद्यार्थियों को एक सरीखा पाठ देते हैं, परन्तु कोई विद्यार्थी उसे एक बार में, कोई दो बार में और कोई तीन बार में सीख पाता है, इसका क्या कारण है ?"
सुकरात ने समाधान किया- "जिन विद्यार्थियों ने पहले (पूर्वजन्म में) अभ्यास किया है, वे उस पाठ को शीघ्र समझ - सीख लेते हैं, जिन्होंने कम अभ्यास किया है, वे जरा देर से समझ - सीख पाते हैं, और जिन्होंने अभी ( इस जन्म में) सीखना प्रारम्भ किया है, वे बहुत अधिक समय के बाद सीख-समझ पाते हैं।"
इस संवाद में पूर्व का न्यूनाधिक अभ्यास पूवर्जन्म को सिद्ध करता
है।"
"
प्रसिद्ध दार्शनिक 'गेटे' ने एक बार अपनी एक मित्र श्रीमती 'वी. स्टेन' को पत्र लिखा था - " इस संसार से चले जाने की मेरी प्रबल इच्छा है। प्राचीन समय की भावनाएँ मुझे यहाँ एक घड़ी भी सुख में बिताने नहीं देतीं। यह कितनी अच्छी बात है कि मनुष्य मर जाता है और जीवन में
१. (क) अखण्ड ज्योति जून ७४ के लेख पर से
(ख) वही, जून १९७४ के लेख पर से संक्षिप्त, पृ. ३०
२. वही, जून १९७४ के लेख से संक्षिप्त पृ. ३०
३. वही, जून १९७४ के लेख से पृ. ३० ४. वही, जून १९७४ के लेख से पृ. ३०
༥.
जैनदृष्टिए कर्म (प्रस्तावना) पृ. ५-६
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