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कर्म-विज्ञान : कर्म का अस्तित्व (१)
मीमांसा दर्शन में स्वर्गादि फलों की निष्पत्ति के लिए कर्म का अस्तित्व अनिवार्य माना गया है। न्यायदर्शन में शरीरोत्पत्ति में 'कर्म' को निमित्त कारण माना गया है। सांख्य और योगदर्शन भी कर्म के अस्तित्व का स्वीकार करते हैं। योगदर्शन में जन्म (जाति), आयु और भोग (सुख-दुःखसंवेदन) रूप फल का कारण कर्म को माना गया है।
जैन और बौद्ध दर्शन में तो कर्म का अस्तित्व विभिन्न प्रमाणों से सिद्ध किया गया है। इससे पूर्व प्रकरण में आगम प्रमाण से भी कर्म का अस्तित्व सिद्ध किया जा चुका है।
१ तंत्रवार्तिक पृ. ३९५. २ न्यायदर्शन सूत्र ३/२ पृ. ६२-६७ ३ सति मूले तद्विपाको जात्यायुर्भोगाः ।
-योगदर्शन अ. २, सू. १३
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