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अध्यात्म-शक्तियों के विकास का उत्प्रेरक : कर्मवाद
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(अध्यात्म-शक्तियों के विकास का उत्प्रेरक :
कर्मवाद
भारतवर्ष प्राचीनकाल से आध्यात्मिकता की क्रीड़ास्थली रहा है । यहाँ एक से एक बढ़कर तीर्थकर, अवतार, सर्वज्ञ, केवलज्ञानी, वीतरागी, कर्मयोगी, धर्मगुरु, आचार्य, उपाध्याय, ऋषि-मुनि, साधु-संन्यासी एवं महामनीषी, धर्म-धुरन्धर हुए हैं। जिन्होंने अशन, वसन, शयन-जागरण, स्वप्न, गमनागमन, आसन, उपवेशन, भोजन, भाषण, यहाँ तक कि त्याग, तप, व्रत-नियम, श्रम, व्यवसाय, आवास, शिक्षण, आवश्यक आदि प्रत्येक प्रवृत्ति एवं क्रिया के साथ अध्यात्म का आलोक प्रदान किया और उस क्रिया या प्रवृत्ति को विवेक, संयम एवं उपयोग सहित करने का विधान किया।' __साथ ही उन महान् मनीषियों ने यहाँ तक मार्ग-निर्देश किया कि प्रत्येक कार्य, फिर वह धार्मिक, आध्यात्मिक या नैतिक ही क्यों न हो, उसे करते समय आत्मा का ही श्रवण, मनन और निदिध्यासन करना चाहिए।
तप, जप, धर्माचरण-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह या परिग्रह-परिमाण आदि व्रताचरण, दया, दान, संयम, सामायिक, पौषध आदि धार्मिक क्रिया एवं साधना करते समय भी उन्होंने इहलौकिकपारलौकिक फलाकांक्षा, तथा कीर्ति, प्रशंसा, प्रसिद्धि एवं प्रतिष्ठा, अहंकारवृद्धि एवं आसक्ति की दृष्टि से न करने का स्पष्ट मार्गदर्शन दिया, और एकमात्र आत्मशुद्धि एवं वीतरागता की दृष्टि से ही सभी धर्माचरणों एवं आध्यात्मिक साधनाओं को करने का निर्देश दिया। १. जयं चरे जयं चिट्टे जयमासे जय सए। - जयं भुंजतो भासंतो पावकम्म न बधइ॥ -दशवैकालिक सूत्र, अ. ४, गा.८ २. आत्मा वाऽरे श्रोतव्यो, मन्तव्यो, निदिध्यासितव्यश्च। -बृहदारण्यक २/४/५ ३. (क) नो इहलोगट्ठयाए तवमहिट्ठिज्जा, नो परलोगट्ठयाए तवमहिट्ठिज्जा, नो
किति-वन-सिलोगट्ठयाए तवमहिट्ठिज्जा, ननत्य निज्जर?याए
तवमहिट्ठिज्जा॥ (ख) नो इहलोगट्ठयाए आयारमहिट्ठिज्जा, नो परलोगट्ठयाए आयारमहिट्ठिज्जा, नो .
कित्ति-वन्न-सिलोगट्ठयाए आयारमहिट्ठिज्जा, ननत्य आरहतेहिं हेउहिं आयारमहिट्ठिज्जा॥
-दशवैकालिक सूत्र अ. ९ उ. ४ सू. ४-५
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