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कर्म - विज्ञान : कर्मवाद का ऐतिहासिक पर्यालोचन (२)
विकास के जितने भी मुख्य सोपान (श्रेणियाँ) हो सकते हैं, उन सबका उल्लेख करके उन सब अवस्थाओं में किस-किस कर्म का क्या क्या प्रभाव है ? एवं उस प्रभाव से मुक्त होने के लिए जीव किस प्रकार का पुरुषार्थ करे ? यह सब विस्तृत एवं व्यवस्थित वर्णन जैसा जैनपरम्परा के शास्त्रों एवं ग्रन्थों तथा जैन कथाओं में है, वैसा अन्यत्र दृष्टिगोचर नहीं होता। इसलिए यह निर्विवाद कहा जा सकता है कि कर्मवाद का मौलिक विचार, उसका सयुक्तिक विकास तथा उसे व्यवस्थित रूप देने का प्रयास जैनपरम्परा में हुआ है। जैनपरम्परा द्वारा प्रतिपादित कर्मसिद्धान्त के स्फुलिंग अन्य परम्पराओं में पहुँचे और उन्होंने भी अपने- अपने ग्रन्थों में उसका समावेश किया, इससे उनकी विचारधारा भी तेजस्वी बनी है।
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