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कर्म-विज्ञानं : कर्म का विराट् स्वरूप (३).
रक्तातिसारव्याधि पीड़ा पहुँचाती रही। यह सब पूर्वकृत निकाचित कर्मों के अवश्यमेव फलदायिनी शक्ति का प्रभाव था। भगवान् महावीर का जीवन एक तरह से प्रचण्ड कर्मशक्ति से प्रभावित जीवन था।' कर्म की गति अत्यन्त गहन - कर्म की दशा और गति अत्यन्त गहन है। श्री कृष्ण जी के बाल्यकाल के मित्र सुदामा कर्म की गहनता को अभिव्यक्त करते हुए करते हैं-"हम दोनों एक ही गुरु के शिष्य, सहपाठी थे, किन्तु हम दोनों में से एक (कृष्ण) पृथ्वीपति हो गया, और मैं दाने-दाने का मोहताज बन गया। इसलिए कर्म की गति अत्यन्त गहन दिखाई देती है।"२
कर्म की गति को बड़े-बड़े ऋषि, मुनि, महात्मा और अवतारी पुरुष भी भलीभांति जान नहीं सके। संसार में जितने भी दुःख, क्लेश एवं कष्ट दिखाई देते हैं, जो भी अशान्त एवं विक्षुब्ध वातावरण दिखाई देता है, उन सभी के पीछे कर्म की गहन शक्ति और गति काम कर रही है। संक्षेप में कहें तो, संसार में सभी छोटे-बड़े जीव कर्म के प्रकोप से त्रस्त हैं, दुःखित हैं। कर्मशक्ति की विलक्षणता
कर्मशक्ति की विलक्षणता व्यक्त करते हुए एक हिन्दी के कवि कहते
"सीता को हरण भयो, लका को जरण भयोः
रावण-मरण भयो, सती के सराप ते। पाण्डव-अरण्य भयो, द्रुपद-सुता को साथ; भामा (सत्यभामा) को डरन भयो, नारद-मिलाप ते॥
राम-वनवास गयो, सीता-अविसास भयो; द्वारिका-विनाश भयो, योगी के दुराप ते॥
१. (क) ज्ञान का अमृत (पं. ज्ञानमुनि जी म.) पृ. ११५ से सारांश (ख) देखिये कल्पसूत्र में महावीर जीवन (ग) भगवान् महावीर : एक अनुशीलनः (उपाचार्य देवेन्द्रमुनि) (घ) भगवतीसूत्र श. १५
(ङ) 'महावीरचरिय से २. (क) 'गहना कर्मणो गतिः'
- भगवद्गीता (ख) गहन दीसे छे कर्मनी गति, एक गुरुना विद्यार्थी। ते थई बैठो पृथ्वीपति, मारा घरमा रज नथी।"
-सुदामा कथन (कर्मनो सिद्धान्त) पृ. १
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