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कर्म-विज्ञान : कर्म का विराट् स्वरूप (३)
इस तथ्य को भलीभांति समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए-जब जीवकृत कोई कर्म तप, जप, त्याग, संयम, ध्यान, चारित्र साधना आदि आध्यात्मिक साधनों से, सत्पुरुषार्थ से नष्ट कर दिया जाता है, तब आत्मा बलवान दिखाई देती है, किन्तु जब कर्म तप, त्याग, संयम आदि से क्षीण नहीं किया जाता, या वह निकाचित रूप से बँध जाता है, तब जीवात्मा के छक्के छुड़ा देता है। तब शक्तिशाली कर्म उसे नरकादि दुर्गतियों में ले जाकर यातनाओं के महासागर में पटक देता है।'
इसी दृष्टि से 'विशेषावश्यक भाष्य-गणधरवाद' में कहा गया है"कभी कर्म बलवान होते हैं और कभी (आत्मा) जीव बलवत्तर हो जाता है। (आत्मा) जीव और कर्म में इस प्रकार पूर्वापरविरुद्ध टक्कर होती रहती है।" आशय यह है कि कभी जीव, काल आदि लब्धियों की अनुकूलता होने पर कर्मों को पछाड़ देता है और कभी कर्मों की बहुलता होने पर जीव उनसे दब जाता है।
द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारम्भ हुआ, तब ब्रिटेन और फ्रांस के सैनिक बुरी तरह हार रहे थे, चारों ओर हिटलर का जय-जयकार हो रहा था। ऐसा प्रतीत होता था कि हिटलर की सेना शीघ्र ही समस्त देशों को जीत लेगी
और हिटलर विश्वविजेता के रूप में प्रकट हो जाएगा। किन्तु दीर्घकाल तक युद्ध चला। इसी बीच परिस्थितियाँ इस हद तक बदलीं कि हिटलर हार गया और उसे आत्महत्या करनी पड़ी। आत्मा और कर्म के युद्ध में भी ठीक ऐसी ही स्थिति दिखलाई पड़ती है।' वस्तुतः आत्मा की शक्ति ही प्रबल
बाह्य दृष्टि से देखने पर कर्म की शक्ति ही प्रबल दिखाई देती है; परन्तु वास्तव में आत्मा की शक्ति ही प्रबल है। स्थूल दृष्टि वाले लोग व्यवहार के या साधना के क्षेत्र में भ्रमवश यह कह बैठते हैं कि कर्म का कुछ ऐसा ही योग है कि मैं यह त्याग, तप, संयम या साधना नहीं कर सकूँगा। माना कि कर्म बलवान् है, परन्तु आत्मा की चेतनाशक्ति उससे भी प्रबल है। अतः कर्म ही सब कुछ है अथवा कर्म सर्वशक्ति सम्पन्न है, उसी की सार्वभौम सत्ता है, ऐसा मानना बहुत बड़ी भ्रान्ति होगा। कर्म भी एक नियंत्रित तत्त्व है। उस पर भी अंकुश है। वह ऐसा निरंकुश नहीं है कि
१. (क) आत्म-तत्त्व विचार (श्री विजयलक्ष्मणसूरी जी) से सारांश पृ. २८०
(ख) ज्ञान का अमृत से सारांश पृ. ११५ २. कत्थ वि बलिओ जीवो, कत्थ वि कम्माई हुति बलियाई। जीवस्स य कम्मस्स य, पुव्व विरुद्धाई वेराई।
-विशेषावश्यकभाष्य गणधरवाद २/२५ ३. आत्मतत्त्व विचार (श्री विजयलक्ष्मणसूरी जी) पृ. २८१ से
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