________________
४९२
कर्म-विज्ञान : कर्म का विराट् स्वरूप ( ३ )
कर्म और नोकर्म का पारस्परिक सम्बन्ध
तात्पर्य यह है कि कर्म के उदय से जीव के राग, द्वेष, काम, क्रोध, मान, माया, लोभ, सुख-दुःख, मोह, मिथ्यात्व, अज्ञान, अदर्शन, काम, (वेदत्रय) हास्य, रति, अरति, शोक, भय और जुगुप्सा आदि परिणाम होते अवश्य हैं, पर इन भावों के निमित्तभूत कर्म के उदय में प्रायः वस्त्र, गन्ध, अलंकारादि बाह्य पदार्थों (नोकम) की सहायता से ही वे परिणाम होते हैं। नोकर्म (बाह्य पदार्थ) अपने आप में परिणाम उत्पन्न नहीं करते। वे कर्म के उदय होने पर अनुकूल या प्रतिकूल संवेदन में सहायक हो जाते हैं। · · इसलिए इन्हें 'कर्म' न कहकर 'नोकर्म' कहा है।' नोकर्म : कर्म के उदय में सहायक निमित्त
जैसे—किसी के असातावेदनीय कर्म का बन्ध हुआ, उसका परिणाम है - प्रतिकूल संवेदन कराना। उसके विपाक (उदय में आने पर फल-भोग) में प्रतिकूल संवेदन हो भी सकता है, नहीं भी । यदि साधक की समता की साधना परिपक्व है तो नहीं भी हो सकता है। अपरिपक्व साधक को प्रतिकूल संवेदन होता है । परन्तु प्रतिकूल संवेदन किस प्रकार का या किस रूप में होगा? तथा उसके विपाक में कौन-सा काल, क्षेत्र या पुद्गलद्रव्य निमित्त होगा ? यह सब गौण निमित्तभूत नोकर्म पर निर्भर है।
नोकर्मरूप बाह्य सामग्री विविध द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव के भेद से ५ प्रकार की है, वह कर्मों के विपाक, क्षय और क्षयोपशम में सहायक निमित्त होती है। 'कषायप्राभृत' में आचार्य गुणधर ने कर्म-विपाक के उदय और क्षय में पुद्गल - द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और भव (स्थिति) रूपी नोकर्म को सहायक बताये हैं। विविध प्रकार के पुद्गलद्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव अपने-अपने योग्य कर्म के उदय में सहकारी बनते हैं। आशय है कि कर्म का उदय होने पर द्रव्य, क्षेत्र, काल आदि नोकर्मभूत पदार्थ जीव को इष्ट-अनिष्ट (शुभ-अशुभ) फल भुगवाने या फल प्रदान करने में सहायक निमित्त हो जाते हैं।
द्रव्यनिमित्तक नोकर्म का उदाहरण
उदाहरणार्थ-एक मनुष्य क्षुधा से व्याकुल हो रहा है। उसके सातावेदनीय कर्म उदय में आता है। ऐसी स्थिति में वहाँ एक अन्य व्यक्ति
१. महाबन्धो पु. २, प्रस्तावना से भावांश उद्धृत पृ. २२
२. (क) कर्मवाद (युवाचार्य महाप्रज्ञ) से भावांश उद्धृत पृ. ९२
(ख) ‘खेत्त- भव-काल-पोग्गल - ठिदि विवोगोदय-खयो दु । (ग) महाबंध पु. २, प्रस्तावना (पं. फूलचंद जी सिद्धान्तशास्त्री) से
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
- कषायप्राभृत
www.jainelibrary.org