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कर्म - विज्ञान : कर्म का विराट् स्वरूप ( ३ )
इस बीच भी मौत की काली छाया उन पर मंडराती रही। कंस और जरासंध आदि के द्वारा उनको मारने के कई षड्यंत्र रचे गए। परन्तु प्रबलपुण्य कर्मवश वे हर बार बचे रहे। किन्तु कंस और जरासन्ध के घोर अत्याचार के कारण उन्हें यादवगण को लेकर ब्रजभूमि से कूच करके सुदूर द्वारिका नगरी बसा कर रहना पड़ा।
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इस पर भी उनके साथ लगे हुए कर्मों ने उनका पिण्ड नहीं छोड़ा। उन्हें अपनी आँखों के सामने ही द्वारिका नगरी एवं स्वजन - परिजनों का विनाश देखना पड़ा। कर्मशक्ति के प्रकोप से बड़े-बड़े तेजस्वी महारथियों के जीवन निस्तेज और खेदखिन्न हो जाते हैं । " ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती पर कर्मशक्ति का प्रकोप
ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती असाधारण शक्ति सम्पन्न एवं अपार ऋद्धि तथा ऐश्वर्य का स्वामी था, किन्तु कर्मों की शक्ति के प्रकोप के आगे उसका कुछ भी वश नहीं चला। अपने उपकारी एक ब्रह्मण को अपने राज्य में प्रत्येक घर से प्रतिदिन सपरिवार भोजन करने की स्वीकृति दे दी थी। एक दिन जब चक्रवर्ती के यहाँ भोजन करने की बारी आई तो चक्रवर्ती ने उससे सविनय कहा - "विप्रवर ! मेरे यहाँ का भोजन आपको पच नहीं सकेगा, वह मुझे ही पच सकता है, इसलिए इस आग्रह को छोड़ दें। मैं आपके भोजन की अन्यत्र अच्छी व्यवस्था कर देता हूँ ।" लेकिन उक्त ब्राह्मणं अपने आग्रह पर अड़ा रहा कि आज तो मैं आपके यहाँ ही सपरिवार भोजन करूँगा। ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती ने उसका अत्याग्रह देखकर उसकी बात मान ली। चक्रवर्ती के राजमहल में वह ठीक समय पर सकुटुम्ब भोजन के लिए पहुँच गया। सबकी थाली में तीव्र मादक वस्तुओं से बनाया हुआ भोजन परोसा गया। उस भोजन ने ब्राह्मण परिवार की मनोवृत्ति बदल दी। उनके होश गुम हो गए। वे भान भूलकर कामोत्तेजनावश अयोग्य चेष्टाएँ करने लगे। सुबह जब नशा उतरा तो अपने अयोग्य व्यवहार के लिए अत्यन्त लज्जित हुए। ब्राह्मण के मन में यह शंका पक्की हो गई कि "ब्रह्मदत्त ने मुझे जान-बूझ कर कुछ खिला दिया, जिससे मेरी हालत ऐसी बिगड़ गई। इसका बदला लिये बिना नहीं छोडूंगा । "
ऐसा दृढ़ निश्चय करके वह इसी अवसर की फिराक में था। एक दिन वह एक जंगल में होकर जा रहा था कि एक निशानेबाज ग्वाला मिल गया जो गुलेल से पीपल के पत्तों में छेद कर रहा था। ब्राह्मण ने उसके पास
१. (क) महाभारत से
(ख) श्रीमद्भागवत से
(ग) ज्ञान का अमृत पृ. १७.
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