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क्या कर्म महाशक्तिरूप है ? ४४१ सोलह वर्ष तक अन्धत्व भोगना पड़ा। यह कर्मशक्ति-जनित आश्चर्य नहीं तो क्या है ? महाबलिष्ठ षट्खण्डाधीश भरत चक्रवर्ती अपने लघुभ्राता बाहुबली से द्वन्द्वयुद्ध में पराजित हो गए। यह भी कर्मशक्ति का प्रभाव था। त्रिखण्डाधिपति श्री कृष्ण वासुदेव विलक्षण शक्तिशाली एवं अपूर्व ऋद्धि-सिद्धि के स्वामी थे, किन्तु प्रचण्ड कर्मबल के आगे उनकी भी एक न चली। जीवन के अन्तिम दिनों में उनका लगभग सारा परिवार, परिजन, सगे-सम्बन्धी आदि द्वारिका के दहन की भेंट चढ़ गए। माता-पिता को उन्होंने बचाने का भरसक प्रयत्न किया, किन्तु द्वारिका के मुख्य द्वार की शिला के गिरने से वे भी मरण-शरण हो गए। वे और उनके बड़े भाई बलभद्र बचे थे। वन में श्रीकृष्ण की पिपासा शान्त करने हेतु बलभद्र जल लेने गए और उधर जराकुमार के बाण से श्री कृष्ण जी का देहावसान हो गया। इस सर्वनाश का कारण कर्मगति नहीं तो क्या है? दुर्दान्त दस्यु हत्यारा चिलातीपुत्र जो एक दिन घोर पापकर्मों से आक्रान्त था, शुभकर्मों के उदय से वह शान्ति और समता का धनी बन गया। नारद के जीवन में निर्वाण की परिणति भी कर्मसत्ता की परिचायिका है। इस प्रकार तीनों लोकों में कर्म की आश्चर्योत्पादिका निर्माण शक्ति सर्वोपरि विजयिनी है।" कर्मशक्ति से प्रभावित जीवन ,
____ कर्मशक्ति की प्रतिकूलता या प्रकुपित वक्रदृष्टि के कारण ही चरम तीर्थंकर भगवान् महावीर को साढ़े बारह वर्ष अनेकानेक असह्य एवं भीषण उपसर्गों और कष्टों का सामना करना पड़ा। मनुष्यों, तिर्यञ्चों और देवों ने उनके जीवन में यातनाओं का एक जाल-सा बिछा दिया था। यद्यपि वे चतुर्विधश्रमण संघ के अधिनायक, एवं सर्वेसर्वा थे, किन्तु छद्मस्थ अवस्था के दौरान संगम देव द्वारा घोर कष्ट दिया गया। एक ग्वाले ने उनके कानों में कीले ठोक दिये। कहीं गुप्तचर समझकर वे गिरफ्तार किये गए। कहीं उन पर भयंकर प्रहार भी हुए। जब वे अनार्यदेश में पधारे, तब तो अनार्यों ने उन्हें कष्ट देने में कोई कसर नहीं रखी। उन पर शिकारी कुत्ते छोड़े गए; जिन्होंने उनके शरीर से मांस नोच-नोच कर खाया। लाठी, डंडों, ढेलों आदि से उन पर निर्दयतापूर्वक प्रहार किया। उन्हें तरह-तरह से अपमानित किया। केवलज्ञानी तीर्थकर बनने पर भी उनके भूतपूर्व शिष्य गोशालक द्वारा उन पर तेजोलेश्या छोड़ी गई। यद्यपि वह तेजोलेश्या उनका प्राणान्त नहीं कर सकी, फिर भी उनके शरीर में कई दिनों तक
१. आत्मतत्त्व विचार (प्रवक्ता-विजयलक्ष्मण सूरी जी) से सार-संक्षिप्त पृ.
२८५-२८७
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