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२८६ कर्म-विज्ञान : कर्मवाद का ऐतिहासिक पर्यालोचन (२) . .. दास-पौरुषेय तथा सन्मित्र, सुज्ञातिजन, उच्चगोत्र, सौन्दर्य, स्वस्थता, महाप्रज्ञा, कुलीनता, यशस्विता एवं बलिष्ठता आदि से युक्त होते हैं। फिर वे पूर्वकृत तप-संयमादि शुद्ध धर्म के कारण विशुद्ध बोधि का अनुभव करते हैं। इसके पश्चात् इस मनुष्य शरीर से तप-संयमादि की साधना से सभी कर्मों का क्षय करके सिद्ध, बुद्ध, शाश्वत मुक्त परमात्मा हो जाते हैं।'
कहना होगा कि कर्मशास्त्रों में शरीरशास्त्र का वर्णन मनुष्यों को भौतिकता एवं कामभोगों में फंसाने के लिए नहीं, अपितु प्राप्त शरीरादि अवयवों से तप, त्याग, संयमादि धर्मों की अध्यात्म-साधना करके मुक्ति प्राप्त करने के लिए है। इसलिए कर्मशास्त्र में, शरीरशास्त्र का वर्णन भी आध्यात्मिक पृष्ठभूमि पर आधारित है। शरीरशास्त्र और मानसशास्त्र की अपेक्षा कर्मशास्त्र की विशेषता
शरीरशास्त्र शरीर की परिधि में ही विचार करता है। कोई व्यक्ति नहीं जानता है कि उसे क्या करना है ? अथवा कोई व्यक्ति जानता तो है, परन्तु उसे करने में सक्षम नहीं है। कोई व्यक्ति करता तो है, किन्तु यथार्थ ढंग से नहीं करता। परन्तु एक व्यक्ति ऐसा है, जो जानता भी नहीं, और कर भी नहीं सकता।शरीरशास्त्री से पूछा जाएगा कि इन चारों के पृथक्-पृथक् व्यक्तित्व अथवा पृथक्-पृथक् क्षमता-अक्षमता का क्या कारण है ? शरीरशास्त्र इसका कारण और कुछ नहीं बताकर स्नायविक उत्तेजना और परिस्थिति के तारतम्य को ही कारण बताएगा। परन्तु ऐसी स्नायविक उत्तेजना और ऐसी परिस्थिति ही इन चारों को क्यों मिलीं? यह शरीरशास्त्र नहीं बता सकता।
मानसशास्त्र इन्हीं चारों प्रकार के व्यक्तियों की क्षमता-अक्षमता के समाधान के लिए चारों के अवचेतन मन का मनोविश्लेषण करके मानसिक समस्या को ही कारण रूप में प्रस्तुत करेगा और अन्त में वह परिस्थिति और परिस्थितिजनित स्नायविक उत्तेजना को ही कारण बताएगा। मानसशास्त्र की दौड़ अवचेतन मन तक ही तो है। वह अवचेतन मन के सन्दर्भ में ही उत्तर देगा। किन्तु अवचेतन मन में चारों की क्षमता में ऐसा तारतम्य क्यों? इसका समाधान मानसशास्त्र के पास नहीं है।
कर्मशास्त्र चारों प्रकार की क्षमता-अक्षमता वाले इन चार व्यक्तियों के सामर्थ्य के मूल कारणों पर विचार करता है, उसी के सन्दर्भ में उत्तर देता है। वह परिस्थितियों को निमित्त जरूर मानता है। परन्तु ऐसी परिस्थितियों, क्षमता-अक्षमता का मूल हेतु क्या है ? इसके समाधान के लिए कर्मशास्त्र कहेगा-इसके पीछे कोई न कोई कर्म अवश्य ही मूल कारण है। १. उत्तराध्ययन सूत्र अ. ३ गा. १६ से २०
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