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कर्म-विज्ञान : कर्मवाद का ऐतिहासिक पर्यालोचन (२)
प्राणी जैसा और जिस किस्म का कर्म करता है, उसे वैसा और उस किस्म का फल कर्म के द्वारा ही मिल जाता है। प्राणी अपने बुरे कर्म का फल चाहे या न चाहे, उसका फल कर्म द्वारा मिल ही जाता है।
उदाहरणार्थ-कोई प्राणी जहर खा ले, और फिर चाहे कि उसका फल न मिले, यह असम्भव है। जैनदर्शन-मान्य कर्मवाद इतना अवश्य मानता है कि चेतन के साथ सम्बन्ध के बिना जड़ कर्म फल देने में समर्थ नहीं है। परन्तु कर्मवाद का यह सयुक्तिक एवं सप्रमाण कथन है कि फल देने के लिए ईश्वररूप चेतन की प्रेरणा मानने की कोई आवश्यकता नहीं है । क्योंकि सभी जीव चेतन हैं। वे जैसा कर्म करते हैं, तदनुसार उनकी गति-मति भी वैसी हो जाती है। इस कारण बुरे कर्म का फल न चाहने पर भी वे ऐसा कृत्य कर बैठते हैं, जिससे उन्हें अपने कृतकर्म के अनुसार वैसा. ही, उसी किस्म का फल मिल जाता है। इसीलिए भगवान् महावीर ने कहा : है-"पहले जैसा भी कुछ (अच्छा-बुरा) कर्म किया गया है, वह भविष्य में उसी रूप में फल देने आता है।" "जैसा किया हुआ कर्म, वैसा ही उसका फल भोग।"२ "अच्छे कर्मों का फल अच्छा होता है, और बुरे कर्मों को फल बुरा होता है।
कर्म करना और उसका फल न चाहना, ये दो अलग-अलग स्थितियाँ हैं। कोई व्यक्ति हत्यारा, डाकू, चोर या बलात्कारी है, आततायी है, वह हत्या, डकैती, चोरी, बलात्कार आदि दुष्कर्म करके यह चाहे कि मुझे अपने कुकृत्य का फल न मिले, राजदण्ड, लोकनिन्दा, समाजदण्ड, अथवा अन्त में परलोक में भयंकर दण्ड से मैं बच जाऊँ, यह कथमपि सम्भव नहीं है। इहलौकिक दण्ड से कदाचित् वह बच जाय, परन्तु पारलौकिक दण्ड से बचना दुष्कर है। हाँ, जिस व्यक्ति ने अमुक अपराध या दुष्कर्म किया है, वह व्यक्ति पश्चात्तापपूर्वक निष्पक्ष गुरु के समक्ष अपनी आलोचना-निन्दना करे, समाज या सम्बन्धित जन-समूह के समक्ष अपना अपराध नम्रतापूर्वक सपश्चात्ताप स्वीकार करे और तदनुरूप प्रायश्चित्त अंगीकार करके आत्मशुद्धि कर ले तो उसके उक्त दुष्कर्म का दण्डरूप में फल उसे बहुत ही । स्वल्प मिलता है।
इसी प्रकार शुभ फलाकांक्षा के बिना कोई भी सत्कार्य या परोपकार का कार्य-सेवाकार्य करता है, तब भी उसे उसका फल शुभ ही मिलता है। १. 'ज जारिस पुव्वमकासि कम्म, तमेव आगच्छति संपराए।' -सूत्रकृतांगसूत्र २. 'जहाकडं कम्म, तहासिभारे।'
-सूत्रकृतांगसूत्र ३. 'सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णफंला भवंति, ... दुचिण्णा कम्मा दुचिण्णफला भवंति।'
-औपपातिक सूत्र .. ..
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