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३३६ कर्म-विज्ञान : कर्मवाद का ऐतिहासिक पर्यालोचन (२)
कपड़ा तन्तु से तथा घड़ा मिट्टी से ही उत्पन्न हो, यह प्रतिनियत लोकव्यवस्था काल के द्वारा घटित नहीं हो सकती। प्रतिनियत कार्य के लिए प्रतिनियत उपादान कारण का स्वीकार करना ही अभीष्ट है।' एकान्तस्वभाववाद की समीक्षा
स्वभाववादी यदि यह कहे कि जगत् के समस्त कार्य को निष्पन्न करने में स्वभाव ही एकमात्र कारण है, तो यह कथन एकान्त होने से मिथ्या होगा।
प्रत्येक पदार्थ का अपने द्वारा सम्भावित कार्य करने का स्वभाव होने पर भी उस कार्य की निष्पत्ति या विकासशीलता केवल स्वभाव से नहीं हो सकती, उसके लिए अन्य कारण सामग्री भी अपेक्षित होती है। मिट्टी के पिण्ड में घड़े को उत्पन्न करने का स्वभाव होने पर भी उसकी उत्पत्ति कुम्भकार, दण्ड, चक्र, चीवर आदि पूर्ण सामग्री के होने पर ही हो सकती है। उस घड़े को पकाने, ऊपर से रंगने, आदि विकास का कार्य भी कुम्भकार आदि के पुरुषार्थ से होता है, स्वभाव से नहीं। यदि किसान खेत जोतने, बीज बोने आदि का पुरुषार्थ (पूर्वप्रयत्न) न करता तो बीज का अन्न उत्पन्न होने का वह स्वभाव बोरे में पड़ा-पड़ा सड़ जाता। अतः अकेले स्वभाव से ही अभीष्ट कार्य निष्पन्न नहीं होता। स्वभाववाद को अहैतुकवाद मानना भी प्रत्यक्ष और अनुमान से बाधित है, क्योंकि जगत् में प्रत्येक कार्य किसी न किसी कारण-सामग्री से निष्पन्न होता देखा गया है। इसी प्रकार स्वभाववाद को लेकर निराशा का अवलम्बन लेना भी उचित नहीं है कि इस पदार्थ का स्वभाव अमुक पदार्थ बनने का है ही नहीं; तब फिर पुरुषार्थ करने से अथवा काल की प्रतीक्षा करने, या भाग्य को कोसने से क्या होगा ? रेतीली जमीन में कपास, गन्ना, गेहूँ आदि पैदा होने का स्वभाव नहीं है, किन्तु आज के वैज्ञानिकों ने रेगिस्तान की रेतीली भूमि को भी अपने पुरुषार्थ से रासायनिक मिश्रणों द्वारा उपजाऊ बना दिया है। आज वहाँ कपास, गन्ना, गेहूँ आदि भी होने लगे हैं। अतः स्वभाववाद का आश्रय लेकर निराशावाद को स्थान देना उचित नहीं। स्वभावनियतता होने पर भी अन्य कारण सामग्री से आँखें मूंद लेना ठीक नहीं। २. एकान्तनियतिवाद की समीक्षा ____एकान्त नियतिवाद को मानकर यह समझ बैठे कि जो होना होगा, वही होगा, हमारे करने से क्या होगा ? अथवा सर्वज्ञ प्रभु ने जैसा देखा १. विशेष स्पष्टीकरण के लिए देखिये-जैनदर्शन (डॉ. महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य)
पृ.८०-८१ २. स्वभाववाद के विशेष स्पष्टीकरण के लिये देखें-जैनदर्शन (डॉ. महेन्द्रकुमार
न्यायाचाय)
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