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कर्म का परतंत्रीकारक स्वरूप
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कर्म करने के निर्णय में मनुष्य स्वतंत्र : परन्तु बाद में कर्म - परतंत्र
निष्कर्ष यह है कि रागादि परिणामयुक्त कर्ममात्र परतंत्रताकारकबन्धनकारक है। इसलिए कर्म करने से पहले मनुष्य यह निर्णय करने में स्वतंत्र है कि मुझे शुभ कर्म करना चाहिए या अशुभ ? अथवा मुझे अबन्धक शुद्ध कर्म करना चाहिए ? शुभ परिणाम हों या अशुभ परिणाम, दोनों से किये जाने वाले कर्म करने में मनुष्य स्वतंत्र है, परन्तु इन दोनों प्रकार के बन्धनकारक साम्परायिक कर्मों का स्वभाव जीव को परतंत्र बनाने का है, यह समझ लेना चाहिए । ऐर्यापथिक कर्म, रागादि परिणामों से रहित शुद्ध निष्काम कर्म, बन्धरहित होने से वे मनुष्य को परतंत्र नहीं बना सकते। कर्म के परतंत्रीकरण स्वरूप का यही फलितार्थ है ।
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