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क्या कर्म महाशक्तिरूप है ? ४३५ हैं-"आप आकाश में उड़ जायँ, दिशाओं के परले पार चले जायें, अगाध महासागर के तल में जाकर बैठ जायें, कहीं भी जाकर छिप जायँ, जहाँ चाहे, वहाँ पहुँच जाएँ, लेकिन आपने जन्म-जन्मान्तर में जो भी शुभाशुभ कर्म किये हैं, उनके फल तो आपकी छाया की तरह आपके साथ ही रहेंगे। वे आपको फल दिये बिना कदापि नहीं छोड़ेंगे।" फल भोगने तक कर्मशक्ति पीछा नहीं छोड़ती
भगवान् महावीर ने तो स्पष्ट शब्दों में कहा कि "कृतकर्मों (निकाचित रूप से बाँधे हुए कर्मों) का फल भोगे बिना आत्मा का छुटकारा नहीं हो सकता।"२ कई व्यक्ति यह सोचते हैं कि परलोक में किये हुए कर्म तो वहाँ के शरीर छूटने के साथ ही छूट गए, अब तो इस लोक में हम जो अच्छे कर्म करते हैं, उन्हीं का फल भोगना रहा, किन्तु भगवान् महावीर ने अपनी अनुभव सिद्ध वाणी में कहा-"जीव ने जो कर्म परलोक में किये हैं, उनका फल भोगना यदि बाकी रह गया है तो उनके फल इस लोक में भोगे जाते हैं, तथा कई कर्म ऐसे भी होते हैं, जो इस लोक में किये गए हैं, उनके फल इस लोक में भी भोगे जाते हैं।" कर्मों की सर्वत्र अप्रतिहत गति
तात्पर्य यह है कि कर्मों की सर्वत्र अबाध गति है। किसी महान् से महान् कहलाने वाले व्यक्ति द्वारा या कहीं भी छिपकर, एकान्त में, अंधेरे में 'किये गये कर्म के फल को भी भुगताये बिना कर्म नहीं छोड़ता। तथागत बुद्ध भी इसी तथ्य का समर्थन करते हैं-"चाहे अन्तरिक्ष में चले जाओ, चाहे समुद्र में घुस जाओ, एवं चाहे पर्वत की गुफा में छिपकर बैठ जाओ, किन्तु जगत् में ऐसा कोई भी प्रदेश (स्थान) नहीं है, जहाँ स्थित होने पर पाप कर्मों (क फल) से छुटकारा मिल जाए।" जीव द्वारा विभाव में रमण करने में कर्म की सामर्थ्य ही कारण है। कर्म की शक्ति अचिन्त्य है।
१. आकाशमुत्पततु गच्छतु वा दिगन्तमम्भोनिधिं विशतु तिष्ठतु वा यथेष्टम्। - जन्मान्तरार्जित-शुभाशुभ-कृन्नराणां, छायेव न त्यजति कर्मफलानुबन्धि।।
-शान्तिशतकम् ८२ २. "कडाण कम्माण न मोक्ख अत्थि।"
-उत्तराध्ययन सूत्र ४/३ ३. "परलोगकडा कम्मा इहलोए वेइज्जन्ति। ... इहलोगकडा कम्मा इहलोए वेइज्जति॥"
- भगवती सूत्र ४. (क) न अंतलिक्खे न समुद्दमझे, न पव्वतानं विवरं पविस्स। . न विज्जति सो जगतिप्पदेसो, यत्थट्ठितो मुञ्चेय्य पावकम्मा।"
-धम्मपद ९/१२ (ख) पंचाध्यायी उत्तरार्द्ध १०५/९२५
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