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४१२ कर्म-विज्ञान : कर्म का विराट् स्वरूप (३) ।
जन्म से शरीर-मन-इन्द्रियाँ आदि की प्राप्ति, उनकी प्राप्ति से विषयों का रागद्वेषपूर्वक ग्रहण, फिर कर्मबन्ध और गति, शरीरादि की प्राप्ति आदि। इस प्रकार कर्मों के उदय में आने पर फलभोग और फलभोग के समय समभाव न रहने से रागद्वेषादि से आत्मा द्वारा कुछ कर्म और अर्जित हो जाते हैं। जिनके फल फिर कालान्तर में या अगले जन्म या जन्मों में भोगने पड़ते हैं। इस प्रकार आत्मा सर्वथा कर्माधीन प्रतीत होती है। कर्म आत्मा को अपने स्वभाव के अनुसार परतंत्र बना देते हैं। जब तक आत्मा संवर और निर्जरा द्वारा आने वाले कर्मों को स्थगित और पूर्वबद्ध कर्मों को क्षीण नहीं कर देती, तब तक उसकी (आत्मा की) कर्म-परतंत्रता मिट नहीं सकती। . अष्टविध कर्मों द्वारा जीवों का परतंत्रीकरण कैसे-कैसे ? ... आत्मा का मूल लक्षण उपयोग है। उपयोग के दो भेद हैं-साकार और अनाकार। साकार उपयोग को ज्ञान और अनाकार उपयोग को दर्शन कहा गया है। यहाँ पर साकार का अर्थ सविकल्प है और अनाकार का अर्थ निर्विकल्प है। जो उपयोग वस्तु के विशेष अंश को ग्रहण करता है वह सविकल्प है और जो उपयोग सामान्य अंश को ग्रहण करता है वह निर्विकल्प है। इस प्रकार आत्मा की ज्ञान शक्ति और दर्शन शक्ति दोनों असीम-अनन्त हैं।
वर्तमान में संसारी छमस्थ आत्मा की ज्ञानशक्ति और दर्शनशक्ति 'दोनों ही आवरण से मुक्त नहीं हैं। एक पर ज्ञानावरणीय कर्म छाया हुआ है, दूसरी पर दर्शनावरणीय कर्म। आत्मा की अनन्त (असीम) ज्ञानशक्ति किस प्रकार आवृत है ? इस सम्बन्ध में गोम्मटसार में एक उपमा द्वारा समझाया गया है कि जिस प्रकार किसी के नेत्र पर कपड़े की पट्टी बांध देने से उसे किसी वस्तु का विशेष ज्ञान नहीं हो पाता, इसी प्रकार आत्मा के असीम ज्ञान पर ज्ञानावरणीय कर्म का आवरण लगा हुआ है। अथवा दर्पण खुला हो (आवरणरहित हो या धुंधला, अथवा अन्धा न हो) तो उसमें प्रत्येक व्यक्ति अपना प्रतिबिम्ब हुबह देख सकता है, परन्तु उस पर पर्दा पड़ा हो, अथवा वह धुंधला या अंधा हो तो उसमें प्रतिबिम्ब यथार्थरूप से नहीं दिखाई दे सकता। इसी प्रकार आत्मारूपी दर्पण पर ज्ञानावरणीय कर्मरूपी पर्दा पड़ा होने से आत्मा का असीम ज्ञान (चैतन्य) प्रगट नहीं हो पाता। सम्यग्ज्ञान का अधिकांश भाग आवृत हो जाता है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि संसारी छद्मस्थ आत्मा (जीव) का ज्ञानस्वभाव ज्ञानावरणीय कर्म से आवृत है, उसका ज्ञान कर्म-परतंत्र है, स्वतंत्र नहीं है।
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