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कर्मवाद के अस्तित्व - विरोधी वाद - १
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भगवान् महावीर की दृष्टि में नियतिवाद का यह निरपेक्षिक रूप कर्मवाद और पुरुषार्थवाद पर कुठाराघात करने वाला है। भगवान् महावीर को भी कई नियतिवादियों से वाद-विवाद करके उनका युक्ति-युक्त समाधान करना पड़ा था। आजीवकों और जैनों में बहुत सी बातों में समानता थी, किन्तु मुख्य भेद नियतिवाद और पुरुषार्थवाद का था । जैनागमों में ऐसे कई उल्लेख हैं, जिनसे स्पष्ट प्रतीत होता है, कि स्वयं भगवान् महावीर ने भी उस युग के कई प्रसिद्ध नियतिवादयों को एकान्त एवं निरपेक्ष नियतिवाद के दोष बताकर उनकी मान्यता पुरुषार्थवाद एवं कर्मवाद से सापेक्ष शुद्ध नियतिवाद के रूप में परिवर्तित कराई थी । '
१. (क) उपासकदशांग अ. ६ एवं ७
(ख) सूत्रकृतांग सूत्र २/१/६, २/१/१२ (ग) व्याख्या - प्रज्ञप्ति सूत्र, शतक १५
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