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३३० कर्म-विज्ञान : कर्मवाद का ऐतिहासिक पर्यालोचन (२)
अन्तःस्थित स्थल में शस्त्रों का प्रवेश हुआ।" पकुध का यह वाद कर्मवाद का कट्टर विरोधी है। इससे कर्मवाद की धज्जियाँ ही उड़ जाती हैं।
विनयवाद-संसार के प्रत्येक पदार्थ का विनय करना, हाथ जोड़ना, उसके आगे नम्रता दिखाना, उसकी भक्ति करना एवं उसकी सत्य के विरुद्ध बात को भी हाँ जी हाँ कहकर मान लेना, विरोध न करना, यहाँ तक कि स्वयं को हीन और दूसरे को उत्कृष्ट मान लेना यह एकान्त विनयवाद का स्वरूप है। यह प्राचीनकाल में प्रचलित था। सूत्रकृतांगसूत्र में इसका वर्णन मिलता है। विनयवादी मनुष्य ही नहीं, कुत्ते, कौए, बिल्ली आदि सबका विनय करने में ही पुण्य, धर्म और स्वर्ग समझते थे। यह एकान्त विनयवाद
भी विवेकविकल, अनेकान्त दृष्टि से विरुद्ध और कर्मवाद सिद्धान्त के प्रतिकूल होने से अनुपादेय माना गया।
क्रियावाद-यद्यपि क्रियावाद कर्मवाद का समर्थक है, किन्तु वहाँ क्रियावाद का अर्थ सत्क्रियावाद है। ज्ञानक्रियाभ्या मोक्षः' इस सूत्र के अनुसार वहाँ क्रियावाद सम्यक्चारित्र एवं सम्यक्तप के आचरण में रूढ़ है। उस व्यवहार चारित्र से तथा बाह्याभ्यन्तर तपश्चरण से निश्चयचारित्र (स्वरूपरमणरूप चारित्र तथा तप) को प्राप्त किये बिना साधक मोक्षगामी नहीं हो सकता सर्वकर्मों से मुक्त, सिद्ध-बुद्ध नहीं हो पाता है। अतः सम्यग्ज्ञानपूर्वक क्रियावाद कर्ममुक्ति का पोषक होने से कर्मवाद के अनुकूल है। परन्तु यहाँ क्रियावाद अज्ञानपूर्वक क्रिया तथा अन्धविश्वासपूर्वक प्रवृत्ति या अज्ञानपूर्वक तप करने के अर्थ में है। वर्तमान भौतिक विज्ञानवादी भी इस अन्तिम लक्ष्यविहीन क्रियावाद के अन्तर्गत आ जाते हैं। और वे लोग भी आ जाते हैं, जो एकान्त रूप से अविद्या, अस्मिता, राग-द्वेष, अभिनिवेश, मिथ्याग्रह आदि से युक्त होकर अहर्निश श्रम करने की प्रेरणा देते हैं। सूत्रकृतांग में ऐसे एकान्त क्रियावादियों को मिथ्यात्वी माना है।
एकान्त-ज्ञानवाद-एकान्त ज्ञानवादी केवल तत्त्वज्ञान से ही मुक्ति मानते हैं। उत्तराध्ययन सूत्र में "एकान्त ज्ञान बघारने वाले चारित्र से
१. (क) सामञफल सुत्त, दीघ निकाय २, . (ख) बुद्धचरित पृ. १७३ २. गणधरवाद प्रस्तावना पृ. १२६ ३. देखिये- सूत्रकृतांग-१/१/२/२ में विनयवाद का वर्णन। ४. अगुणिस्स णत्यि मोक्खो।-उत्तरा २८/३० गा. ५. जे आयावाई लोयावाई कम्मावाई किरियावाई। -आचारांग श्रु. १ अ. १ ६. सूत्रकृतांग सूत्र १/१/२/२ में एकान्त क्रियावाद का वर्णन देखें।
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