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२९२ कर्म-विज्ञान : कर्मवाद का ऐतिहासिक पर्यालोचन (२)
कर्मशास्त्र अन्तरंग कारण बताता है
मन-वचन-काया की प्रत्येक प्रवृत्ति के पीछे दो प्रकार के कारण होते हैं-अन्तरंग कारण और बाह्य कारण। बाह्य कारण तो हमें झटपट समझ में आ जाते हैं, किन्तु अन्तरंग कारण को गहराई में जाकर खोजना पड़ता है।
एक व्यक्ति बीमार है। वह वैद्य, डॉक्टर, प्राकृतिक चिकित्सक, आदि अलग-अलग चिकित्सकों के पास जाएगा तो वे उक्त रोग का कारण भी अलग-अलग बतायेंगे। फिर ज्योतिषी, मांत्रिक-तांत्रिक, मनश्चिकित्सक आदि के पास जाएगा तो वे भी अपने-अपने ढंग से बीमारी का कारण बताएँगे। एक ही रोग के विभिन्न कारण विभिन्न दृष्टिकोणों से बताये जाएँगे। सम्भव है, वे उक्त रोग के निवारण के लिए अपने-अपने तरीके से उपचार भी करें। परन्तु कई बार ऐसा होता है कि विभिन्न प्रकार के सभी सम्भव उपचार करने पर भी वह रोग नहीं मिटता। उसका कारण यह है कि ये सभी रोग-प्रतीकारक विभिन्न व्यक्ति रोग के केवल बाह्य कारणों को ही बता पाते हैं, जो उनके ग्रन्थों में लिखे होते हैं। रोग के आन्तरिक कारण की तह में वे नहीं पहुँच पाते। इसीलिए एक प्राचीन श्लोक प्रसिद्ध है
"वैद्या वदन्ति कफ-मारुत-पित्तकोपम्, ज्योतिर्विदो ग्रहगणस्य फल वदन्ति। भूताभिषग इति भूतविदो वदन्तिः । प्राचीनकर्म बलवद् मुनयो वदन्ति॥"
विभिन्न वैद्यों से जाकर पूछेगे तो वे शरीरगत वात, पित्त या कफ का विकृत-कुपित होना बतलाएँगे। ज्योतिषियों से पूछने पर वे विपरीत ग्रहगति बताएँगे। भूतवादी कहेंगे-तुम भूताविष्ट हो गए हो, या तुम पर भूत-प्रेत की छाया पड़ गई है। इसी प्रकार विभिन्न पैथियों के डाक्टरों में कोई कीटाणुओं के कारण, कोई शरीर में विजातीय द्रव्य इकटे होने के कारण तथा कोई अमुक लवण की कमी के कारण, अथवा हड्डी विशेषज्ञ अमुक हड्डियों का सन्तुलन ठीक न होने के कारण और रंग चिकित्सा शास्त्री (Colour therapist) शरीरगत विभिन्न रंगों की हानि-वृद्धि होने के कारण उक्त रोग का होना बतलाएँगे। परन्तु कर्मशास्त्र-विशेषज्ञ मुनिवर रोग का अन्तरंग कारण बतायेंगे-पूर्वकृत कर्मों का विपाक; अथवा पूर्वबद्ध अशुभ (असातावेदनीय) कर्मों का उदय।
कर्मशास्त्र प्रत्येक अच्छी-बुरी घटना के मूल (अन्तरंग) कारण को अभिव्यक्त करता है। रोग भी एक घटना है, उसका अन्तरंग कारण कोई न कोई पूर्वकृत अशुभ आचरण है, जिसके कारण कर्मबन्ध हुआ है, और उसी प्राक्-बद्ध कर्म का फल इस रोग के रूप में व्यक्ति को मिल रहा है। अतः
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