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२६८ कर्म-विज्ञान : कर्मवाद का ऐतिहासिक पर्यालोचन (२)
मान्यता उचित है कि संसार की रचना तथा सांसारिक प्राणियों को कर्मफल भुगवाने तथा सुख-दुःख देने में ईश्वर का कोई हाथ नहीं है। संसारी जीव जो कुछ करता है उसका दायित्व उसी पर रहता है। कर्मफल भुगवाने के लिए उसे किसी ईश्वर या विधाता की आवश्यकता नहीं रहती, कोई चाहे या न चाहे, कर्म अपना फल स्वयं देते हैं। कोई प्राणी चाहे या न चाहे, कर्मों में स्वतः ऐसी शक्ति है कि वे स्वयं कर्त्ता को अपना फल दे देते हैं। जैसे - भांग या शराब का चेतन के साथ संयोग होते ही वे दोनों नशा चढ़ा देती हैं वैसे कर्म भी विविध रूप में चेतना पर आवरण डाल कर उसे सुख-दुःख रूप फल प्रदान करते हैं।
जीव सदा-सदा के लिए जीव ही रहता है, वह आत्मा से परमात्मा नहीं बन सकता, यह मान्यता भी युक्तिसंगत नहीं है। कारण यह है कि पूर्वबद्ध कर्मों के आत्यन्तिक क्षय और नये आते हुए कर्मों का विरोध करने से वह जीव (आत्मा) भी सर्वकर्म रहित होकर सिद्ध-बुद्ध मुक्त परमात्मा बन सकता है। कोई भी युक्ति, तर्क या अनुभूति इसका खण्डन नहीं कर सकती। प्रत्येक आत्मा परमात्मा बन सकती है, बशर्ते कि वह कर्मों का सर्वथा क्षय कर डाले ।
इसके अतिरिक्त कर्म जड़ (पुद्गल ) अवश्य हैं, किन्तु यह अपनी विलक्षण शक्ति का चेतन पर अवश्य प्रभाव दिखाता है। जैसे रसायन आदि औषधियाँ जड़ होती हुईं भी अपना प्रभाव चेतन पर दिखाती हैं। वैसे ही कर्म जड़ होते हुए भी अपना प्रभाव चेतन पर दिखलाते हैं, तब आश्चर्यचकित कर देते हैं।
बौद्ध दर्शन कर्मवाद को मानने पर भी क्षणिकवादी था
भगवान् महावीर और महात्मा बुद्ध दोनों समकालीन महापुरुष थे। जैनधर्म की तरह बौद्ध धर्म भी उस समय प्रचलित था। उसमें ईश्वरकर्तृत्व का निषेध नहीं था, तो उसका स्वीकार भी नहीं था । इस तथ्य के सम्बन्ध में तथागत बुद्ध उदासीन थे। उनका उद्देश्य उस युग में प्रचलित विविध यज्ञादि अनुष्ठानों में हिंसा को रोकना और निर्वैरभाव को फैलाना था । उनकी तत्वनिरूपण पद्धति भी उस तात्कालिक उद्देश्य की पूर्ति के अनुरूप थी। वे कर्मवाद के सन्दर्भ में कर्म और उसके विपाक को मानते थे। सुत्तनिपात में इसका स्पष्ट रूप से निरूपण भी है कि यह समग्र लोक कर्म
१. (क) अप्पा वि य परमप्पो, कम्म विमुक्तो य होइ फुडं । (ख) तवसा धुयकम्मंसे, सिद्धे हवइ सासए । (ग) "खवित्तु कम्मं गइमुत्तमं गया । "
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- भावपाहुड १५१
- उत्तराध्ययन ३/२०
- दशवैकालिक अ. ९ उ. २ गा. २४
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