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कर्मवाद के समुत्थान की ऐतिहासिक समीक्षा २८३
करना अतीव दुष्कर है। और कर्म सिद्धान्त के चिन्तन-मनन- ध्यान द्वारा स्व-स्वरूप में लीनता हो जाने से परमात्मपद प्राप्ति या मुक्ति भी संहज हो सकती है।
इस शताब्दी में भी कर्मवाद का गहन अध्ययन करने वाले कई आचार्य, मुनिवर एवं श्रावक-श्राविकागण हैं। श्वेताम्बर आचार्यों में स्व. विजयप्रेमसूरी जी म. कर्मसिद्धान्त के मर्मज्ञ माने जाते हैं। उनके प्रयत्न एवं प्रेरणा से उनके समुदाय में कर्मशास्त्र के विशेषज्ञ के रूप में उनकी समस्त शिष्यमण्डली तैयार हो गई है। उन्होंने उपलब्ध समस्त श्वेताम्बर एवं दिगम्बर कर्मसाहित्य का अध्ययन, मनन, मन्थन करके प्राकृत एवं संस्कृत भाषा में नई शैली में लगभग दो लाख श्लोक परिमित 'खवगसेढ़ी' 'पयडीबंधो,' 'ठिईबंधो' 'रसबंधो,' 'पएसबंधी' आदि महान् ग्रन्थों की रचना की है। "
और भी कई छोटी बड़ी अनेक पुस्तकें हिंदी, गुजराती, अंग्रेजी आदि प्रादेशिक भाषाओं में कई मुनियों एवं विद्वानों ने लिखी हैं। फिर भी कर्मसिद्धान्त के सम्बन्ध में अभी बहुत कुछ शोधकार्य अपेक्षित है।,
पूर्वात्मक, पूर्वोद्धृत, एवं प्राकरणिक कर्मशास्त्र की मूलगाथाएँ प्राकृत भाषा में हैं । किन्तु उन पर व्याख्याएं, टीकाएं, नियुक्तियाँ प्रायः संस्कृत भाषा में हैं।
प्राकरणिक कर्मसाहित्य पर हिन्दी, गुजराती, कन्नड आदि तीन भाषाओं में अनुवाद, विवेचन, टीका-टिप्पणी आदि हैं । दिगम्बर साहित्य ने कन्नड़, तमिल एवं हिन्दी आदि प्रादेशिक भाषाओं का तथा श्वेताम्बर साहित्य ने हिन्दी, गुजराती तथा राजस्थानी भाषा का आश्रय लिया है।
इन सब विवरणों का पर्यालोचन करने से एक बात स्पष्टतः परिलक्षित होती है कि वर्तमान में दर्शनशास्त्र के अध्येताओं, अध्यात्मशास्त्र के चिन्तकों, धर्मधुरन्धर साधु-साध्वियों एवं कतिपय श्रावक-श्राविका वर्ग में, तथा शिक्षित वर्ग में कर्मसिद्धान्त के अध्ययन अध्यापन की प्रवृत्ति बढ़ी है। कर्मसिद्धान्त के सभी अंगों और रहस्यों को जानने की उत्सुकता में भी
१. इसके विस्तृत विवरण के लिये देखिये
(क) 'कर्मसिद्धान्त सम्बन्धी साहित्य' सं. २०२१ में श्री मोहनलालजी ज्ञानभण्डार सूरत से प्रकाशित
(ख) कर्मसाहित्यनुं संक्षिप्त इतिहास (मुनि श्री नित्यानन्दविजयजी)
(ग) जैनकर्मसाहित्य का संक्षिप्त विवरण (ले. अगरचन्द नाहटा ) जिनवाणी कर्मसिद्धान्त विशेषांक
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