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कर्म-विज्ञान : कर्मवाद का ऐतिहासिक पर्यालोचन (२)
'निवृत्तिधर्मी मोक्षवादियों के समक्ष पहले से यह एक जटिल प्रश्न था कि "प्रत्येक जीव के-विशेषतः मानव के पूर्ववद्ध कर्म अनन्त हैं, फिर क्रमशः उनका फल भोगते समय भी प्रतिक्षण नये-नये कर्म बंधते हैं, तब इन सब कर्मों का सर्वथा क्षय कैसे और किन साधनों से हो सकता है ?" .
परन्तु मोक्षवादियों ने इस जटिल प्रश्न का भी युक्तियुक्त एवं अकाट्य तर्कसंगत समाधान दिया था। आज हम उक्त निवृत्तिवादी दर्शनों के साहित्य में इस और ऐसे ही कर्मवाद सम्बन्धी कई जटिल प्रश्नों के समाधान का संक्षिप्त या विस्तृतरूप में एक सरीखा निरूपण पाते हैं। ...
इस वस्तुस्थिति पर से इतना तथ्य तो अवश्य ही प्रतिफलित होता है कि निवर्तकवादियों के विभिन्न पक्षों में यदा-कदा कर्मवाद और मोक्ष आदि विषयों पर पर्याप्त विचार-विनिमय होता था। इतना जरूर है कि ये निवर्तकवादी विभिन्न पक्ष परस्पर विचार विमर्श के लिए अपनी-अपनी सुविधानुसार जब तब परस्पर मिलते रहे, पृथक्-पृथक् भी चिन्तन करते . रहे। और जब तक ये प्रवर्तक धर्मवाद की सिद्धान्त विरुद्ध तथा तत्त्व से असंगत बातों का निराकरण करते रहे, तब तक इनमें एकवाक्यता भी रही। यही कारण है कि सांख्य-योग, न्याय-वैशेषिक, जैन और बौद्ध दर्शन के साहित्य में कर्म विषयक वर्णन के संदर्भ में लक्षण, अर्थ, परिभाषा, भाव, वर्गीकरण आदि बातों में कहीं शब्दशः और कहीं अर्थशः साम्य प्रचुरमात्रा में परिलक्षित होता है। यह साम्य भी उन-उन निवर्तकवादी दर्शनों के विद्यमान रचित साहित्य में उस समय अंकित हुआ, जबकि उन-उन दर्शनों में परस्पर सद्भाव एवं विचारों का आदान-प्रदान बहुत ही कम हो गया था।
दुर्भाग्य से, शनैः शनैः ऐसा समय आ गया, जब ये निवृत्तिवादी पक्ष पहले जितने निकट नहीं रहे, फिर भी प्रत्येक पक्ष कर्मवाद के विषय में ऊहापोह तो करता ही रहा। फिर भी एक समय ऐसा आया कि निवृत्तिवादियों के एक पक्ष-जैनदर्शन में कर्मसिद्धान्त पर गहराई से चिन्तन-मनन और अध्ययन-अध्यापन करने वाला एक अच्छा-खासा वर्ग तैयार हो गया। यह वर्ग मोक्षसम्बन्धी प्रश्नों की अपेक्षा कर्मसम्बन्धी प्रश्नों पर गहराई से विचार करता था। इस कर्मसिद्धान्तविशेषज्ञ वर्ग ने कर्मशास्त्र-विषयक कई ग्रन्थ भी लिखे हैं। जो आज भी नई पीढ़ी ही नहीं, जैन-जैनेतर सभी वर्ग के अध्यात्म-चिन्तकों के लिए पर्याप्त मार्गदर्शन देते
सारांश यह है कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, इन चारों पुरुषार्थों में कर्मवाद का क्या और कितना स्थान है ? यह विवेक कर्मनिवृत्ति के अन्तिम लक्ष्य के सन्दर्भ में करना आवश्यक है।
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