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१७४ कर्म-विज्ञान : कर्म का अस्तित्व (१)
ईश्वरकृत सृष्टि रचना का सयुक्तिक निराकरण
यद्यपि संसारी आत्मा (जीव) और कर्म के अनादि सम्बन्ध की युक्तिपूर्ण मान्यता से ईश्वरकर्तृत्ववादी सहमत नहीं हैं। उनका कथन है कि विश्व की उत्पत्ति और रचना का मुख्य कारण कर्म नहीं, ईश्वर है । उपनिषद् में बताया गया है- 'ईश्वर ने इच्छा की मैं एक (अकेला हूँ, बहुत हो जाऊँ' । इस प्रकार उसने जगत की सृष्टि की। इसकी विस्तृत चर्चा मनुस्मृति तथा अन्य वैदिक पुराणों में की गई है । वहाँ लिखा है -.
“यह संसार पहले तम-प्रकृति में लीन था। इससे यह दिखलाई नहीं देता था । सर्वत्र गाढ़निद्रा की सी अवस्था थी । तब अव्यक्त स्वयम्भू अन्धकार का नाशकर पंच महाभूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश ) को प्रकट करते हुए स्वयं व्यक्त हुए........ । अनेक प्रकार के जीवों की सृष्टि की । इच्छा से उस ईश्वर ने ध्यान करके सर्वप्रथम अपने शरीर से जल उत्पन्न किया और उसमें शक्ति रूप बीज डाला। वह बीज सूर्य के समान चमकने वाला सोने का सा अण्डा बन गया । '
“उस अण्डे में वह ब्रह्मा एक वर्ष तक रहा। फिर उसने अपने ध्यान से स्वयं ही उस अण्डे के दो टुकड़े कर डाले । ब्रह्मा ने इन दो टुकड़ों से स्वर्ग और पृथ्वी का निर्माण किया। मध्य में आकाश, आठों दिशाएँ और जल के शाश्वत स्थान - समुद्र का निर्माण किया। फिर आत्मा से मन और मन से अहंकार तत्त्व को प्रकट किया। साथ ही बुद्धि, तीनों (सत्व, रज और तम ) गुण, और विषयों को ग्रहण करने वाली पांचों इन्द्रियों को क्रमशः उत्पन्न किया। ......फिर उस ईश्वर ने सृष्टि के आरम्भ में वेद के शब्दों से सबके अलग-अलग नाम और कार्य नियत कर दिये । और उनकी संस्थाएँ बना दीं। सनातन ब्रह्मा ने यज्ञसिद्धि के लिये अग्नि, वायु और सूर्य से क्रमशः ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद, इन तीनों वेदों को प्रकट किया। फिर समय, समय के लिये विभाग, नक्षत्र, ग्रह, नदी, समुद्र और पर्वत बनाए । "
“हिरण्यगर्भ ने अपने शरीर के दो भाग किए और आधे से पुरुष और आधे से स्त्री बन गया। उस स्त्री में उसेने विराट् पुरुष की सृष्टि की।"
"मैंने प्रजाओं की सृष्टि की इच्छा से अतिदुष्कर तपस्या करके दस महर्षियों को उत्पन्न किया. ..। इस प्रकार मेरी आज्ञा से इन महात्माओं ने अपने तप योग से कर्मानुसार स्थावर-जंगम की सृष्टि की। " २
१. (क) 'सोऽकामयत - एकोऽहं बहुस्याम् । तैत्तिरीय उपनिषद्
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(ख) जैनगजत् में प्रकाशित भदन्त आनन्द कौशल्यायन के लेख पर से (ग) महाबन्धो भाग २ की प्रस्तावना पृ. १५ से सारांश ।
२. 'जैनजगत्' में प्रकाशित 'भदन्त आनन्द कौशल्यायन" के लेख से
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