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कर्म अस्तित्व के प्रति अनास्था अनुचित १९३
अतिवृष्टि - अनावृष्टि आदि के प्रकोप से फसल नष्ट हो जाती है फिर भी किसान मन में कदापि अविश्वास नहीं लाता कि बीज बोना बेकार है, इससे अन्न उत्पन्न नहीं हुआ। अतः वह न तो बीज के अस्तित्व के विषय में सन्देह करता है, और न ही उसके बोने के परिणाम के विषय में। वह बीज और उसके आरोपण के फल के विषय में संदिग्ध होकर अगले वर्ष बीज बोने का पुरुषार्थ छोड़ नहीं देता।
दुष्प्रवृत्तियों से अपना ही अहित है
इसी प्रकार सत्कर्म या दुष्कर्म करने पर उसका सुख-दुःख रूप फल तुरंत या इस जन्म में न मिले तो भी कर्मबीज और उसके फल के होने में संदेह करना अपनी ही आत्मिक प्रगति को रोकना या अपनी ही दुर्गति को निमंत्रण देना है। कर्म और कर्मफल के अस्तित्व के प्रति श्रद्धाहीन लोगों द्वारा दुष्कृत्यों, दुर्भावनाओं और दुष्प्रवृत्तियों से दूसरों का अहित और अपना हित होने की बात सोची जाती है, परन्तु वस्तुस्थिति इसके सर्वथा विपरीत है । "
जैसा बोओगे, वैसा काटोगे
दुष्कर्म हों या सुकर्म वे तो समय पर अपना फल दिये बिना हीं रहते। समग्र जगत् कर्म - व्यवस्था के आधार पर चलता है। 'जैसा तुम 'बोओगे वैसा ही काटोगे', यह कहावत प्रसिद्ध है। क्रिया की प्रतिक्रिया अवश्य होती है। घड़ी का पेण्डुलम जिस ओर से चलता है, उसे लौट कर वापस उसी ओर आना पड़ता है। गेंद जहाँ से फैंक कर मारी जाती है, वहाँ से लौट कर वह वापस उसी जगह पर आना चाहती है । शब्दवेधी बाण की तरह शुभ-अशुभ विचार या उच्चार भी अन्तरिक्ष में चक्कर काटकर वापस उसी मन-मस्तिष्क में आ विराजते हैं, जहाँ से उन्हें छोड़ा गया है। कर्म के सम्बन्ध में भी यही बात है।
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'क्रिया की प्रतिक्रिया अवश्य होती है
दूसरों के हित-अहित के लिए जो विचार, उच्चारण या आचरण किया जाता है, उसकी प्रतिक्रिया कर्ता पर तो अनिवार्यरूप से होती है, जिसके लिए वह विचार आदि किये गये थे, उसे लाभ-हानि भले ही न हो।
अखण्ड ज्योति जून १९७७ से सार संक्षेप
(क) 'Asyousow,soyou will reap' – English Proverb
(ख) अखण्ड ज्योति सितम्बर १९७७ से सार संक्षेप
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