________________
कर्म अस्तित्व के प्रति अनास्था अनुचित १८५
वाले सरकारी अधिकारियों या बाबुओं से भी गये-बीते भोंदू सिद्ध होते । परन्तु अन्धविश्वास प्रेरित व्यक्ति स्व-कर्म के अस्तित्व को भूलकर इनका स्वरूप और कार्य भी ऐसा ही मान बैठता है।
वर्तमान जीवन में भी देखा जाता है कि जो विद्यार्थी कसकर मेहनत करता है, उसे ही अवश्य उस सत्कृत्य का शुभ फल (उत्तीर्ण होने के रूप में) मिलता है। जो व्यायाम करता है, वही व्यक्ति सुदृढ़ व सशक्त शरीर वाला बनता है। दूसरा कोई देव या भगवान् ऐसा नहीं है, जो किसी को बिना ही अध्ययन किये परीक्षा में उत्तीर्ण कर दे या बिना ही व्यायाम आदि किये किसी के भी शरीर को सुदृढ़ एवं सुडौल बना दे, तब देव या भगवान् शुभाशुभ कर्म को किये बिना ही व्यक्ति को शुभ या अशुभ कर्म का अच्छाबुरा फल कैसे दे देगा? कर्म के अस्तित्व के प्रति आस्थाहीनता : क्यों और कैसे ?
__इसी प्रकार दुष्कर्मों का तत्काल फल न मिलने के कारण कुछ लोगों की आस्था कर्म और कर्मफल से डगमगाने लगती है। वे इस तर्ज में सोचने लगते हैं कि हमारे दुष्कृतों को कौन देखता है ? फल तो तत्काल मिलने वाला है नहीं । बाद में भी किसी जन्म में मिलेगा, तब देखा जाएगा; परमात्मा से अपने उन दुष्कृत्यों एवं पापों के लिए माफी मांग कर उनके दुष्परिणामों से बच जाएँगे। कई लोग शुभकर्म करने वालों को निर्धन, अभाव-पीड़ित और दर-दर के मोहताज बनते और अशुभकर्म-पापकर्म या अधर्म करने वालों को सुख-सुविधाओं और आर्थिक सम्पन्नता से युक्त देखते हैं, तो उनका हृदय भी कर्म के अस्तित्व के प्रति आस्थाहीन होने लगता है।
यह तो प्रतिदिन का अनुभव है कि आग को छूते ही तत्काल हाथ जल जाता है, मिर्च खाने से मुंह भी तत्काल जलता है, इसलिए आग को छुने और मिर्च को बिना सोचे-समझे खाने की कोई मूर्खता नहीं करता, किन्तु अन्य शुभ या अशुभ कर्मों का फल प्रायः तत्काल नहीं मिलता, उनके परिपाक में विलम्ब हो जाता है, इसी में बालबुद्धि के अदूरदर्शी लोग अधीर होकर यह सोचने लगते हैं कि कर्म नाम की कोई चीज संसार में नहीं है। यदि शुभ या अशुभ कर्म होता तो उसका फल तत्काल क्यों नहीं मिलता है। कई नास्तिक तो यहाँ तक कहने लगते हैं कि “बर्फ खाते ही तत्काल मुंह ठंडा हो जाता है, पानी में कूदते ही तत्काल डूबते हैं, शिकंजे में हाथ फंसाते हैं तो तत्काल हमारा हाथ दब जाता है। तब फिर अच्छे या बुरे कर्मों का फल देर से मिलने या इस जन्म में न मिलने की बात से कर्म को ही क्यों माना जाए ? जो कुछ अच्छा या बुरा करना हो करते जाओ।"
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org