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कर्म का अस्तित्व कब से और कब तक ? १७१ हैं तो प्रश्न उठेगा-अण्डे के बिना मुर्गी कहाँ से आई ? इसी प्रकार दूसरी यह युक्ति भी प्रस्तुत की जाती है कि बीज और वृक्ष इन दोनों में पहले कौन, बाद में कौन ? यदि वृक्ष को पहले मानते हैं तो प्रश्न उठेगा कि बीज के बिना वृक्ष कहाँ से उत्पन्न हुआ ? और यदि बीज को पहले मानते हैं तो प्रश्न उठेगा कि वृक्ष के बिना बीज कहाँ से आया ? इसी प्रकार आत्मा और कर्म दोनों जब अनादि हैं, तो प्रश्न होता है आत्मा और कर्म, इन दोनों में पहले कौन हुआ, पीछे कौन ? यदि आत्मा को कर्म से पहले मानते हैं तो प्रश्न उठेगा-जैनदृष्टि से निश्चयनय की अपेक्षा से आत्मा विशुद्ध माना जाता है। जब आत्मा विशुद्ध है, तब उस पर कर्म कालिमा कैसे लग गई ? शुद्ध आत्मा पर तो कर्म लगना ही नहीं चाहिए। यदि शुद्ध आत्मा पर भी कर्ममल का लगना माना जाएगा तो कर्ममुक्त शुद्ध परमात्मा पर भी कर्ममल लग जाएगा। ऐसी स्थिति में शुद्ध आत्मा भी कर्मलिप्त होकर पुनः पुनः संसार में आवागमन करने लगेगी। परन्तु दशाश्रुतस्कन्ध के अनुसार कर्मबीज दग्ध हो जाने के पश्चात् कर्ममुक्त शुद्ध सिद्ध परमात्मा संसार में फिर कभी नहीं आते।'
'आत्मा प्रथम है या कर्म ?' यह ऐसी प्रश्नावली है, जिसका कोई उत्तर आत्मा को या कर्म को प्रथम मानने वालों के पास नहीं है। इसलिए कर्म और आत्मा, इन दोनों में भी पहले-पीछे का प्रश्न खड़ा किया जाएगा, तो अनेक उलझनें आकर व्यक्ति के दिमाग के चारों ओर घेरा डालकर खड़ी हो जाएँगी, विभिन्न तर्क-वितर्क अपना तीर तान कर समाधान प्राप्त करने के लिए उपस्थित हो जाएँगे। कर्म अकारण ही कैसे लग गए आत्मा के?
यदि आत्मा का अस्तित्व कर्म के अस्तित्व से पहले माना जाए तो शंका होगी कि अगर कर्म पहले अस्तित्व में नहीं था तो इसका मतलब यह हुआ कि आत्मा पर किसी प्रकार का कर्ममल नहीं लगा था, वह अपने पूर्ण शुद्ध रूप में था। ऐसी दशा में, कर्म अकारण ही हठात् कैसे लग गए आत्मा के ? आत्मा (जीव) के बिना किये ही कर्म उसके साथ कैसे लिपट गए ? जब 'कर्म' का पहले अस्तित्व ही नहीं था, और आत्मा के साथ उसके लगने
- दशाश्रुतस्कन्ध ५/१५
१. जहां दड्ढाणं बीयाणं ण जायंति पुण अंकुरा। ।... कम्मबीएसु दड्ढेसु, ण जायंति भवाकुरा॥ २. (क) कर्ममीमांसा पृ.१७
(ख) कर्मवाद : एक अध्ययन, पृ. ११/१२/१३ ३. (क) कर्मवाद : एक अध्ययन, पृष्ठ १२
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