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विलक्षणताओं का मूल कारण : कर्मबन्ध १५३
यदि पैतृकगुण ही संतान के गुणों के आधार होते तो, एक ही परिस्थिति में पैदा होने वाले, समान सुविधा प्राप्त बालक, यहाँ तक कि एक ही पिता के पुत्र इतने असमान या भिन्न क्यों दिखाई देते हैं? यह असमानता उनकी मौलिक विशेषता, क्षमता एवं योग्यताओं में भिन्नता को लेकर होती है। एक उन्हीं परिस्थितियों और असुविधाओं में भी विद्वान, विचक्षण, योग्य, प्रतिभाशाली बन जाता है, जबकि दूसरा दयनीय अवस्था में ही पड़ा रहता है। यह पूर्वजन्मों में कृत कर्मों द्वारा उपार्जित सूक्ष्म क्षमता या संस्कारों की ही विशेषता है, जो एक को विकास की उच्च अवस्था में पहुँचा देती है, जबकि दूसरे को अविकसित स्थिति में पड़ा रहने देती है। विकास की यह पारस्परिक भिन्नता इस बात की प्रमाण है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने साथ पूर्वजन्मों की कुछ मौलिक विशेषताएँ अपने साथ बीज रूप में लेकर आता है । '
इससे जन्म-जन्मांतर-कृत कर्मों का अस्तित्व तथा आत्मा का अविनाशित्व सिद्ध होता है।
मानवेतर प्राणियों में विलक्षणताएँ कर्म को मूल कारण मानने पर ही सिद्ध होती हैं।
कर्मविज्ञान ने तो पूर्वजन्मकृत कर्मों के कारण मानवीय गुणों में ही नहीं, मानवेतर प्राणियों, यहाँ तक कि वृक्ष-वनस्पतियों में भी विशेषताएँ एवं विलक्षणताएँ प्रमाणित की हैं।
सुना है, बीकानेरनरेश गंगासिंह जी के यहाँ दो बैल ऐसे थे, जिनमें से एक बैल ग्यारस के रोज और एक बारस के रोज बिलकुल नहीं खाता था। उन दोनों के नाम क्रमशः ग्यारसिया और बारसिया रखे हुए थे। महाराणा प्रताप के चेतक घोड़े की स्वामिभक्ति इतिहास प्रसिद्ध है ।
इसी प्रकार लोहावट (फलौदी जिले) में एक ऐसा कुत्ता था, जो अष्टमी को बिलकुल नहीं खाता था। कई-कई कुत्ते बड़े स्वामिभक्त और विलक्षण होते हैं जो अपने मालिक के लिए प्राण तक दे देते हैं। एक अंग्रेज ने तो अपने स्वामिभक्त कुत्ते के मरने पर उसकी शवयात्रा निकाली थी, और सम्मानपूर्वक दफना कर उस जगह पर उसकी समाधि बनवा दी थी। एक विदेशी धनाढ्य ने अपने मरने के बाद अपनी सारी सम्पत्ति कुत्ते के नाम से वसीयत कर दी थी।
इसे पूर्वजन्मकृत कर्मों का ही फल मानना पड़ता है। कई पशुओं के स्वभाव में इतना विलक्षण परिवर्तन आ जाता है, उससे ऐसा प्रतीत होने १ अखण्ड ज्योति, सितम्बर १९७९ के 'गतिशील जीवन प्रवाह' लेख से सार संक्षेप पृ. १८
२ 'आँखों से देखी, कानों से सुनी' पुस्तक से सार-संक्षेप
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