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विलक्षणताओं का मूल कारण : कर्मबन्ध १५७
आते हैं। इन सब प्राणि-विलक्षणताओं को देखते हुए जन्म-जन्मान्तर से कर्म का अस्तित्व तथा आत्मा का परिणामी-नित्यत्व सिद्ध होता है।
फिर भी युवाचार्य महाप्रज्ञ ने एक नई आशा व्यक्त की है"जैसे-जैसे विज्ञान की निरन्तर नई-नई खोजें होती हैं, मुझे विश्वास है कि एक दिन यह तथ्य भी अनुसन्धान में आ जायेगा कि 'जीन' केवल माता-पिता के गुणों या संस्कारों का ही संवहन नहीं करते, किन्तु ये हमारे (तथा अन्य प्राणियों के) किये हुए कर्मों का भी प्रतिनिधित्व करते हैं, ये (जीन) कर्म से भी जुड़े हुए हैं। यह तथ्य अभी तक खोजा नहीं गया, पर बहुत सम्भव है, यह शीघ्र खोज लिया जाएगा।..... दोनों शरीर से जुड़े हुए हैं-एक स्थूल (औदारिक या वैक्रिय) शरीर से और दूसरा सूक्ष्मतर (कम) शरीर से।- आनुवंशिकता के ये नियम कर्मवाद के संवादी नियम है। आज के आनुवंशिकता के सिद्धान्त ने कर्मसिद्धान्त को समझने में सुविधा दी है और प्रवेश-द्वार खोला है। तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाए तो आनुवंशिकता, जीन और रासायनिक परिवर्तन-ये तीनों सिद्धान्त कर्म के ही सिद्धान्त हैं। आनुवंशिकता के सिद्धान्त की खोज के आधार पर कर्मवाद को जानने में एक कदम आगे बढ़ा जा सकता है। -।""
.१ 'कर्मवाद (युवाचार्य महाप्रज्ञ) से साभार संक्षिप्त, पृ. १६४-१६५
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