________________
१५४ कर्म-विज्ञान : कर्म का अस्तित्व (१) लगता है जैसे मनुष्यों जैसा आचरण करने वाला यह पशु पूर्वजन्म में मनुष्य हो। अगस्त १९७९ में कानपुर से प्रकाशित होने वाले दैनिक 'आज' में एक बड़ा मनोरंजक समाचार छपा था-बम्बई के उपनगरीय क्षेत्र चेम्बूर के एक विद्यालय की एक कक्षा में जब पढ़ाई चल रही थी, तो एक बंदर न जाने कहाँ से घुस आया और छात्रों के बीच में बैठ गया। बंदर को देख कर छात्र चुहलबाजी करने लगे, फिर भी वह चुपचाप शान्तिपूर्वक बैठा रहा। उसे भगाने की कोशिश की गई, फिर भी वह वहाँ से भागा नहीं। और जब कक्षा समाप्त हुई, तभी वह वहाँ से उठकर गया। वह बन्दर कई दिनों तक लगातार इसी प्रकार विद्यालय में आता और कक्षा में आकर बैठ जाता। जब तक विद्यालय के अधिकारियों ने दमकल वालों को बुला कर उस बन्दर को चिड़ियाघर में नहीं भिजवा दिया, तब तक वह नियमित रूप से समय पर विद्यालय में आता और चुपचाप पढ़ाई का आनन्द लेता रहा।'
६ अप्रेल १९७९ के समाचारपत्र 'आज' में एक विचित्र घटना प्रकाशित हुई है-उन्नाव (उ. प्र.) में गंगाघाट के पास रहने वाली एक महिला ने मानव शिशु के स्थान पर कुत्ते के दो पिल्लों को जन्म दिया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार ये पिल्ले एक दूसरे से जुड़े हुए थे। उनके मुँह तो दो थे, परन्तु पैर चार ही थे। कान और मूंछ सब कुत्ते जैसे ही थे।"२
कुछ वर्षों पहले 'कल्याण' (मासिक पत्र) में एक घटना छपी थी एक भक्त गाय की। पाली (राजस्थान) जिले के पूनागर (पाली से १३ मील) गाँव में एक छोटी-सी पहाड़ी पर दुर्गा देवी का एक छोटा-सा मन्दिर बना हुआ है। इसी गाँव की एक गाय प्रतिदिन ऊँची पहाड़ी पर चढ़कर इस दुर्गा मन्दिर में जा पहुँचती और भक्तिभाव से दुर्गा के सामने बैठी रहती। चाहे कैसा ही मौसम हो, अपने मालिक के घर से खुलते ही वह सर्वप्रथम मन्दिर में अवश्य पहुँच जाती। गाय के मालिक ने उसकी इस भक्तिभावना में बाधा डालने की बहुत कोशिश की, पर वह न मानी। पिछले सात वर्षों से उसका यह दर्शनक्रम जारी रहा। लोग उस गाय को देखने आते, और उसे खाद्य पदार्थ भेंट कर जाते। कहते हैं कि वह गाय आज तक गर्भवती नहीं हुई। भक्तकन्या की तरह कामवासना से सर्वथा दूर रहकर वह दुर्गासाधना में संलग्न रहती थी। १ दैनिक 'आज' (कानपुर) की अखण्डज्योति सितम्बर १९७९ में प्रकाशित
- घटना से २ वही, ता. ६ अप्रैल १९७९ में प्रकाशित घटना से ३ कल्याण (मासिक पत्र) जून १९६७ में प्रकाशित घटना
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org