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विलक्षणताओं का मूल कारण : कर्मबन्ध १५१
में भी नहीं थीं, न ही वातावरण या कुल के संस्कार उन्हें प्राप्त हुए थे। जिस देश, समाज और परिवार में चारों ओर मांसाहार एक सामान्य आहार के रूप में प्रचलन हो, वहाँ किसी अबोध बालक द्वारा मांस को छूने से भी अस्वीकार कर देना तथा सात्विक शाकाहारी भोजन पंसद करना, पूर्वजन्मकृत कर्म के संस्कारों के कारण है, जो कर्म और आत्मा अस्तित्व को स्पष्ट: सिद्ध करते हैं।
जार्ज बर्नार्ड शॉ के कुल में सभी मांसाहारी थे। उनके समाज में भी मांसाहार का प्रचलन था, पारिपार्श्विक वातावरण में भी मांसाहार का दौर चलता था किन्तु वे बचपन से शाकाहारी रहे। उन्होंने मांस को छुआ तक नहीं।'
इसी प्रकार श्रेष्ठ परम्पराओं और उत्कृष्ट वातावरण वाले परिवारों में दुर्गुणी-दुराचारी संतति का जन्म लेना, तथा देशभक्त परिवारों में विद्रोही एवं दुराचाररत परिवारों में सज्जन-साधु व्यक्तियों का जन्म लेना, तथा क्रूरता के वातावरण में जन्म लेने वाले बालक में जन्म से ही अथाह करुणा की प्रवृत्ति का पाया जाना आदि अनेक विलक्षणताएँ देखने-सुनने में आती हैं, जो आनुवंशिकी सम्बन्धी, अथवा जीवात्मा के मरणोपरान्त पंचभूतों के बिखर जाने सम्बन्धी मान्यताओं को खण्डित करती हैं। इस प्रकार की विलक्षण घटनाएँ उसी आत्मा द्वारा पूर्वजन्म में उपार्जित कर्म के अनुसार नया जन्म-नया शरीर धारण करने की पुष्टि करती हैं। ___ इलायचीकुमार श्रेष्ठीपुत्र था। वह अच्छे धर्म-संस्कारी कुल में जन्मा था। माता-पिता आदि किसी की भी रुचि या भावना नाट्यकला की ओर नहीं थी। किन्तु इलायचीकुमार का नटकन्या के रूप-लावण्य को देखकर सहसा उस पर मोहित हो जाना और नाट्यकला में प्रवीणता प्राप्त कर लेना, संस्कारों की दृष्टि से वंशानुक्रम एवं वातावरण से भिन्न ही है।' वस्तुतः यह मोहोद्रेक पूर्वजन्मकृत कर्म का फल था। ... शिवाजी चरित्रवान्, वीर और देशभक्त थे, जबकि उनके पुत्र प्राम्भाजी दुश्चरित्र, कायर, शराबी और विद्रोही सिद्ध हुए। . बुद्धि, स्वभाव, भावना और गुणों की ये विलक्षणताएँ जो आनुवंशिकता तथा पर्यावरण (प्रोटोप्लाज्म) के प्रभावों से सर्वथा भिन्न होती
१ . अखण्डज्योति, जुलाई १९७९ के लेख से साभार उद्धृत अंश २. वही, जुलाई ७९ से ३. जैनकथाकोष (मुनि श्री छत्रमलजी) से
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