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कर्म-अस्तित्व के मूलाधार : पूर्वजन्म और पुनर्जन्म-२
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लोकव्यवहार में भी देखा जाता है कि एक ही स्थल पर एक ही घटना के बहुत से दर्शक होते हैं पर उन सभी दर्शकों और श्रोताओं की स्मृति एक सरीखी नहीं रहती। इसी प्रकार सभी को पूर्वजन्म की स्मृति एक-सी नहीं रहती, किन्हीं को पूर्वजन्म की स्मृति नहीं भी होती, किसी-किसी को होती है। इसका समाधान 'शास्त्रवार्तासमुच्चय' में किया गया है कि पूर्वजन्म के संस्कार तो आत्मा में कार्मणशरीर के साथ पड़े रहते हैं। वे अवसर और निमित्त पाकर जागृत होते हैं। इसलिए यद्यपि पूर्वजन्म की पूरी स्मृति एक साथ नहीं होती, किन्तु उस प्रकार का कोई प्रबल निमित्त मिलने पर तथा मतिज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम प्रबल होने पर एवं तथारूप ऊहापोह करने पर किसी-किसी को पूर्वजन्म की स्मति (जातिस्मरणज्ञान) हो भी जाती है। इसके समर्थन में हम पूर्व निबन्ध में अनेक शास्त्रीय उदाहरण भी प्रस्तुत कर चुके हैं। _ पूर्वजन्म को न मानने वालों का एक तर्क यह भी है-"यदि पूर्वजन्म है, तो पूर्वजन्म में अनुभूत सभी विषयों का स्मरण क्यों नहीं होता ? कुछ ही विषयों का स्मरण क्यों होता है ? अर्थात्-पूर्वजन्म में मैं कौन था, कहाँ था, कैसा था ?, इत्यादि सभी विषयों का स्मरण क्यों नहीं होता ?" इसके उत्तर में नैयायिक-वैशेषिकों का कहना है कि आत्मगत जो पूर्व-संस्कार इस जन्म में उबुद्ध (जागृत) होते हैं, वे संस्कार ही स्मृति को पैदा करते हैं। उबुद्ध संस्कार ही स्मृति के कारण हैं, अभिभूत संस्कार स्मृति को जन्म नहीं देते। संस्कार हों, वहाँ स्मृति हो ही, ऐसा नियम नहीं है। स्मृति होने के लिए पहले उस संस्कार का जागृत होना आवश्यक है। इस जन्म में जिन बातों का बचपन में अनुभव किया था, क्या उन सभी बातों का वृद्धावस्था में स्मरण होता है ? नहीं होता। बचपन में अनुभूत विषयों के संस्कार तो वृद्धावस्था में भी विद्यमान रहते हैं, पर वे सभी जागृत नहीं होते। हम जानते हैं कि उत्कट दुःख के कारण कई व्यक्ति परिचित व्यक्तियों को भी भूल जाते हैं, क्योंकि दुःख ने उन परिचित व्यक्तियों के सम्बन्ध में पड़े हुए संस्कारों को अभिभूत कर दिया है। इसी प्रकार जीव की मृत्यु होने पर वह उसके अनेक सुदृढ़ संस्कारों को अभिभूत कर देती है। परन्तु पुनर्जन्म या देहान्तरफ्राप्ति होने पर उसके अनेक पूर्व संस्कार जागृत हो जाते हैं। ऐसे संस्कार-उद्बोधक (निमित्त) अनेक प्रकार के होते हैं, जो विशिष्ट प्रकार के १. 'लोकेऽपि नैकतः स्थानादागताना तथेक्ष्यते । ___ अविशेषेण सर्वेषामनुभूतार्थ-संस्मृतिः ॥" -शास्त्रवार्तासमुच्चय १/४१ . २. शास्त्रवार्ता-समुच्चय(हरिभद्रसूरि) १/४0
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