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९० कर्म-विज्ञान : कर्म का अस्तित्व (१)
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परामनोवैज्ञानिकों की दृष्टि में .
पुनर्जन्म और कर्म
पूर्वजन्म और पुनर्जन्म के अस्तित्व के सम्बन्ध में पिछले दो प्रकरणों में हमने विभिन्न दार्शनिकों, धर्मधुरन्धरों, वैज्ञानिकों-मनो-वैज्ञानिकों द्वारा प्रयुक्त युक्तियाँ, सूक्तियाँ और उनकी अनुभूतियाँ तथा प्रमाणों और आप्त (प्रत्यक्षज्ञानियों के) वचन प्रस्तुत किये हैं और यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि मरणोत्तर जीवन भी है, और मरणपूर्व भी जीवन था। और जन्म-जन्मान्तर का यह अविच्छिन्न जीवन-प्रवाह शुभाशुभ कर्म-संतति के आधार पर चलता आ रहा है। परोक्षज्ञानियों का हार्दिक संतोषजनक समाधान नहीं
परन्तु परोक्षज्ञानियों (अल्पज्ञों) के समक्ष कितने ही प्रमाण, युक्तियाँ, तर्क, आप्तवचन आदि प्रस्तुत किये जाएँ, उनकी दृष्टि में वे सब परोक्ष ही हैं, हृदय-ग्राह्य नहीं; क्योंकि बुद्धि और तर्क के द्वारा अन्तिम निर्णय नहीं हो पाता। बुद्धि का यह विषय ही नहीं है। इस कारण उनके पूर्वजन्म और पुनर्जन्म के प्रश्न का अन्तिम और सन्तोषजनक मनःसमाधान नहीं हो पाता। परामनोवैज्ञानिकों द्वारा इस सम्बन्ध में अनुसन्धान और प्रयोग
परामनोवैज्ञानिकों ने इस शाश्वत प्रश्न को समाहित करने का बीड़ा उठाया। पाश्चात्य जगत् में मरणोत्तर जीवन के विषय में चर्चा-विचारणा कई वर्षों पूर्व तक माइथोलॉजी, मजहब, मेटाफिजिक्स और फिलॉसॉफी का विषय था। पिछले लगभग ६० वर्षों से वहाँ और यहाँ भी इस दिशा में परामनोवैज्ञानिकों ने पर्याप्त अनुसन्धान और प्रयोग किये हैं, और उनके प्रयोग सफल भी हुए हैं। पूर्वजन्म की साक्षी : सभी धर्मों के बालको की पूर्वजन्म-स्मृति
परामनोवैज्ञानिकों ने पूर्वजन्म की स्मृति जिस-जिस बालक को होती थी, उसका साक्षात्कार किया, उनके पूर्वजन्म के स्थान, नाम, सम्बन्धों तथा
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