________________
विलक्षणताओं का मूल कारण : कर्मबन्ध १३९
(द)
विलक्षणताओं का मूल कारण : कर्मबंध
विलक्षणता के सम्बन्ध में जैव-वैज्ञानिक मान्यता
"आत्मा की अविच्छिन्नता एक सचाई है। नवीनतम वैज्ञानिक अन्वेषणों का भी निष्कर्ष यही है कि जीवन की निरन्तरता तो है ही; किन्तु जैव-वैज्ञानिक यह मानते हैं कि जीवन ऊर्जा का रूपान्तरण होता रहता है। उनकी मान्यतानुसार जीवन - कोशिकाएँ और मस्तिष्क के विभिन्न चेतन - प्रकोष्ठ प्राणी की मृत्यु के पश्चात् इधर-उधर बिखर जाते हैं। वे भूमि, जल, वनस्पतियों आदि में समाहित हो जाते हैं और बाद में वे आहार के माध्यम से प्राणियों के भीतर रस, रक्त, मज्जा आदि धातुओं में घुल-मिलकर उनकी सन्तति में 'सेल्स', 'जीन्स', प्रोटोप्लाज्म आदि के रूप में सक्रिय रहते हैं।"
पूर्वजन्म - स्मृति भी उनकी दृष्टि में आत्मा की अविच्छिन्नता नहीं
अनेक व्यक्तियों द्वारा पूर्वजन्म की स्मृतियों के प्रामाणिक विवरण मिलने के बाद जैव-वैज्ञानिक उसका विश्लेषण इसी रूप में करते हैं कि इन व्यक्तियों के पूर्ववर्ती किसी मृत प्राणी के चेतन प्रकोष्ठ या प्रोटोप्लाज्म का कोई अंश गर्भ स्थिति में इनके निर्माणकाल में घासपात या पेड़-पौधों में मिल गया, वही अंश आहार द्वारा मनुष्य शरीर में पहुँचा है, और संतान में अभिव्यक्त हुआ है। ये वैज्ञानिक अभी यह नहीं मानते कि पूर्ववर्ती व्यक्ति का सम्पूर्ण मनोजगत् या आत्मा से जुड़े समस्त (कर्म) संस्कार नये शरीर में उसी पुरानी आत्मा के साथ स्वाभाविक रूप से आ गये हैं । पूर्वजन्म की प्रामाणिक पुनः प्रस्तुति मात्र उनकी दृष्टि में उसी आत्मा द्वारा नया शरीर धारण करने का यथेष्ट प्रमाण नहीं है।
जैव-वैज्ञानिकों की दृष्टि में विलक्षणता का कारण आनुवंशिकता
जैव-वैज्ञानिकों की इस परिकल्पना को यथार्थ माना जाए तब तो यह सिद्ध होता है, किसी भी नई संतान के व्यक्तित्व निर्माण में आनुवंशिक १ अखण्ड ज्योति जुलाई १९७९ पृ. ९ से साभार सारांश उद्धृत
२ वही, जुलाई १९७९ पृ. ९
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org